नई दिल्ली: दुनिया में इस समय काफी कुछ चल रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद इजराइल-हमास जंग के कारण दुनिया दो भागों में विभाजित होती नज़र आ रही है। हालाँकि, हर बार की तरह भारत का रुख बेहद संतुलित है, भारत जहाँ एक तरफ इजराइल पर हुए आतंकी हमलों की निंदा कर रहा है, वहीं वो फिलिस्तीनी लोगों की मदद के लिए राहत सामग्री भी भेज रहा है। भारत का मानना है कि, दोनों देशों को बैठकर बातचीत के जरिए अपनी समस्याओं का समाधान निकालना चाहिए। इसके साथ ही भारत, इजराइल और फिलिस्तीन के द्वी-राष्ट्र सिद्धांत का भी समर्थन कर रहा है और यहूदी-मुस्लिमों के अलग-अलग देशों का पक्ष ले रहा है। लेकिन इस बीच शनिवार (28 अक्टूबर) को संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में कुछ ऐसा हो गया है, जिससे भारत की राजनीति उबल पड़ी है। UNGA में भारत के स्टैंड का जहाँ वामपंथी पार्टियों के कड़ा विरोध किया है, वहीं कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को इस पर 'शर्म' आ गई है और अब UPA अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक लंबा-चौड़ा लेख लिखकर फिलिस्तीन के प्रति अपना दर्द बयां किया है।
सोनिया गांधी ने क्या कहा :-
कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सोमवार (30 अक्टूबर) को कहा कि उनकी पार्टी इजरायल-हमास संघर्ष पर UNGA के हालिया प्रस्ताव पर मतदान से भारत के दूर रहने का 'कड़ा विरोध' करती है। सोनिया गांधी ने यह भी कहा कि कांग्रेस ने इजराइल पर हमास के हमलों की स्पष्ट रूप से निंदा की है। उन्होंने दावा किया कि यह त्रासदी उस वक़्त और बढ़ गई है, जब इज़राइल उस आबादी से बदला लेने पर फोकस कर रहा है, जो काफी हद तक असहाय होने के साथ-साथ निर्दोष भी है। सोनिया गांधी ने एक अंग्रेजी दैनिक में आर्टिकल लिखकर इस मुद्दे पर अपने विचार रखे हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का लंबे समय से यह रुख रहा है कि इजरायल के साथ सह-अस्तित्व में एक संप्रभु, स्वतंत्र और सुरक्षित फलस्तीन राष्ट्र के लिए सीधी वार्ता हो। सोनिया गांधी ने लिखा कि इजरायल पर हमले के बाद कांग्रेस का जो रुख था, वही भारत सरकार का भी रुख था। सोनिया गांधी ने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने शुरुआती बयान (हमास के हमले के वक़्त) में इजरायल के साथ प्रतिबद्धता दर्शाते हुए फिलीस्तीन के अधिकारों का जिक्र नहीं किया था। दूसरा भारत ने 'आम नागरिकों की सुरक्षा और कानूनी एवं मानवीय दायित्वों को कायम रखने' के शीर्षक वाले जॉर्डन के मसौदा प्रस्ताव पर मतदान करने से परहेज किया था।
सोनिया गांधी ने कहा कि, 'इंसानियत इस समय इम्तिहान के दौर से गुजर रही है।' उन्होंने कहा कि, 'इजरायल पर क्रूर हमलों से हम सामूहिक रूप से दुखी हुए थे। लेकिन, अब हम सभी इजरायल की असंगत और समान रूप से क्रूर प्रतिक्रिया से दुखी हो रहे हैं। हमारी सामूहिक अंतरात्मा के जागने से पहले और कितनी मौते होंगी? सोनिया गांधी ने कहा कि 7 अक्टूबर, 2023 को हमास ने इजरायल पर एक क्रूर हमला किया, जिसमें एक हजार से अधिक लोग मारे गए और 200 से अधिक लोगों को किडनैप कर लिया गया था। उन्होंने कहा कि जान गंवाने वालों में से अधिकतर आम लोग थे। सोनिया गांधी ने कहा कि 'इजरायल के लिए अभूतपूर्व, अप्रत्याशित यह हमला विनाशकारी था। कांग्रेस का दृढ़ता से मानना है कि सभ्य दुनिया में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है और अगले ही दिन हमने हमास के हमलों की स्पष्ट रूप से निंदा की।' हालांकि, ध्यान रहे कि, कांग्रेस ने जो निंदा की थी, उसमे कहीं भी हमास का नाम नहीं था और न ही हमले को आतंकी हमला कहा गया था। सुब्रमण्यम स्वामी तो यहाँ तक दावा कर चुके हैं कि, सोनिया गांधी खुद भी फिलिस्तीन में पैसे पहुंचाती थी और ये बात उन्हें खुद तत्कालीन फिलिस्तीनी नेता यासिर अराफात और उस समय भारत के पीएम राजिव गांधी ने बताई थी। स्वामी की बातों का सोनिया गांधी द्वारा कोई खंडन भी नहीं किया गया।
प्रियंका को भी आई थी शर्म:-
सोनिया गांधी से पहले कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने UNGA में पारित एक प्रस्ताव पर मतदान करने से भारत के अनुपस्थित रहने पर शर्मिंदगी जाहिर कर दी थी। इस प्रस्ताव में इजरायल और हमास के बीच मानवीय संघर्ष विराम का आह्वान किया गया था। जॉर्डन द्वारा लाए गए इस प्रस्ताव में गाजा पट्टी तक सहायता पहुंच और नागरिकों की सुरक्षा की भी मांग की गई थी। एक्स, (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में, प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि भारत का UNGA वोट से दूर रहना "एक राष्ट्र के रूप में हमारे देश के जीवन भर से चली आ रही हर चीज के खिलाफ है।'' उन्होंने कहा कि, "एक स्टैंड लेने से इंकार करना और चुपचाप देखना, क्योंकि मानवता के हर कानून को नष्ट कर दिया गया है, लाखों लोगों के लिए भोजन, पानी, चिकित्सा आपूर्ति, संचार और बिजली काट दी गई है और फिलिस्तीन में हजारों पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को नष्ट किया जा रहा है।'' प्रियंका ने लिखा कि, ''एक राष्ट्र के रूप में हमारा देश जीवन भर उन सभी चीजों के खिलाफ खड़ा रहा है जिसके लिए वह खड़ा रहा है।'' उन्होंने महात्मा गांधी को भी उद्धृत किया और लिखा कि, "आंख के बदले आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देती है।"
क्या भारत ने मतदान से दूर रहकर की गलती :-
बता दें कि, भारत ने हाल ही में जॉर्डन के एक प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया, जिसमें गाजा में इजरायली बलों और हमास आतंकवादियों के बीच "तत्काल, टिकाऊ और निरंतर मानवीय संघर्ष विराम" का आह्वान किया गया था। इसके बजाय भारत ने कनाडाई प्रस्ताव का समर्थन किया, जिसमें हमास द्वारा आतंकवादी हमलों की निंदा शामिल थी। वामपंथी नेताओं के साथ ही प्रियंका गांधी-सोनिया गांधी को भी भारत का मतदान करने से परहेज करना पसंद नहीं आया और उन्होंने भारत के रुख पर 'शर्मिंदगी' व्यक्त की। यहां तक कि जिस दिन रविवार को सुबह 9:30 बजे केरल में 3 विस्फोट हुए, उसी दिन दोपहर 12 बजे सीएम पिनारई विजयन दिल्ली में गाजा बचाने की अपील करते और इजरायल पर बरसते हुए देखे गए, वहीं उनके अपने राज्य में एक प्रार्थना सभा में खून फैला हुआ था। फिर भी उन्हे इजरायल–फिलिस्तीन पर भारत के मतदान न करने पर अधिक गुस्सा था। हालाँकि, भारत का कहना था कि, वो युद्धविराम का पक्षधर है, लेकिन प्रस्ताव में इजराइल पर हुए आतंकी हमले की निंदा और हमास द्वारा बंधक बनाए गए इजराइली नागरिकों की रिहाई की बात भी शामिल की जानी चाहिए। ये दोनों बातें शामिल न होने पर और केवल संघर्षविराम की बात होने पर भारत ने मतदान से दूर रहना ही उचित समझा। भारत लगातार हर मंच पर स्पष्ट शब्दों में कह रहा है कि, वो हर तरह के आतंकवाद के सख्त खिलाफ है, क्योंकि उसने सदियों से आतंकवाद के दंश झेले हैं और अपने कई लोगों को खोया है। इसलिए यदि आतंकवादी कृत्यों को नज़रअंदाज़ कर कोई प्रस्ताव लाया जाता है, तो भारत न उसके समर्थन में रहेगा, न विरोध में, लेकिन उससे दूर हो जाएगा। लेकिन, UNGA में प्रस्ताव से भारत के दूर रहना विपक्षी दल, यानी कांग्रेस, वामपंथी दलों को पसंद नहीं आया है, अब जनता को भारत का ये स्टैंड सही लगता है या नहीं, ये फैसला जनता का है। वैसे मतदान से दूर रहने वाला भारत अकेला नहीं था, भारत के ही विचारों से सहमत होकर ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी, जापान, यूक्रेन और ब्रिटेन समेत 43 देशों ने इसपर वोट नहीं डाला। अमेरिका और 13 देशों ने इस प्रस्ताव के विरोध में वोट डाला, जबकि 121 देशों ने इसका समर्थन किया, जिसमे अधिकतर मुस्लिम देश थे।
वोट बैंक के लिए हमास को आतंकी नहीं कह रही कांग्रेस :-
इजराइल पर फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास द्वारा किए गए वीभत्स हमले के दो दिन बाद यानी सोमवार (9 अक्टूबर) को कांग्रेस ने सुबह एक बयान जारी करते हुए इजराइल पर हुए हमले की निंदा की थी, हालाँकि, कांग्रेस ने हमले को 'आतंकी हमला' कहने से परहेज किया था। लेकिन, इसके बावजूद कांग्रेस के मुस्लिम समर्थक नाराज़ हो गए थे और सोशल मीडिया पर कांग्रेस को वोट न देने की धमकी देने लगे थे। इसके बाद कांग्रेस ने उसी दिन शाम को बड़ा यू-टर्न लेते हुए अपनी वर्किंग कमिटी (CWC) की मीटिंग में बाकायदा फिलिस्तीन (हमास का समर्थक) के समर्थन में एक प्रस्ताव पारित किया, यहाँ कांग्रेस ने इजराइल पर हुए हमले का कोई जिक्र ही नहीं किया। ये कदम कांग्रेस ने इसलिए उठाया है कि, उसका मुस्लिम वोट बैंक नाराज़ न हो, क्योंकि आने वाले दिनों में 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं और अगले साल लोकसभा चुनाव। लेकिन, ये भी एक बड़ा सवाल है कि, जिस हमास ने 40 मासूम बच्चों की निर्मम हत्या कर दी, महिलाओं के रेप किए, उन्हें नग्न कर घुमाया, बिना उकसावे के इजराइल के लगभग 1400 लोगों का नरसंहार कर दिया, उसे आतंकी संगठन नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे ?
गौर करने वाली बात ये भी है कि, सीमा विवाद तो भारत का भी पाकिस्तान के साथ है, लेकिन जब पाकिस्तानी आतंकी कश्मीर में हमला करते हैं, तो उसे हम 'आतंकी हमला' ही कहते हैं न, या फिर कुछ और ? यदि कल को पाकिस्तानी आतंकी, भारत पर इस तरह का हमला करते हैं, तो क्या कांग्रेस, भारत सरकार से पलटवार न करने और मार खाकर शांत रहने के लिए कहेगी ? आज भी इजराइल के लगभग 200 लोग हमास के पास बंधक हैं, तो क्या एक देश अपने नागरिकों को आतंकियों के चंगुल में छोड़ सकता है ? उन्हें बचाने के लिए इजराइल को लड़ना नहीं चाहिए, या अपने 1400 लोगों की मौत पर मौन धारण कर लेना चाहिए ? जैसा भारत ने 26/11 मुंबई आतंकी हमलों के दौरान किया था, जब पाकिस्तानी आतंकियों ने लगभग 200 लोगों की जान ली थी। उस समय भारतीय वायुसेना ने सरकार से पाकिस्तानी आतंकी ठिकानों पर कार्रवाई करने की अनुमति मांगी भी थी, लेकिन सरकार ने अनुमति नहीं दी। उल्टा कांग्रेस नेताओं ने पाकिस्तानी आतंकियों को क्लीन चिट देते हुए '26/11 हमला-RSS की साजिश' नाम से किताब लॉन्च कर दी थी।
फिलिस्तीन पर इजराइल का कब्ज़ा कांग्रेस को दिखा, लेकिन PoK का क्या:-
ये बात थोड़ी अजीब लग सकती है, लेकिन सोचने लायक जरूर है। भारत पर सबसे लम्बे समय तक शासन करने वाली कांग्रेस को ये पता है कि, इजराइल ने फिलिस्तीन की जमीन पर कब्ज़ा किया है और भारत से हज़ारों किमी दूर हो रहे इस मुद्दे पर कांग्रेस वर्किंग कमीरी (CWC) द्वारा प्रस्ताव पारित किया गया, प्रियंका गांधी, सोनिया गांधी के बड़े-बड़े बयान सामने आए, महात्मा गांधी तक का जिक्र किया गया। लेकिन क्या उसी कांग्रेस को नहीं पता कि, Pok और अक्साई चीन पर किसने कब्जा कर रखा है ? कांग्रेस तो खुलकर 370 वापस लागू करने का भी समर्थन करती है, जो PoK तो छोड़ो, भारत के हिस्से वाले 'कश्मीर' को भी पाकिस्तान के करीब ले जाता है। भारत सरकार के 370 हटाने के फैसले के खिलाफ कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी है, वो अलग बात है कि, उसको सफलता नहीं मिली। सोचने वाली बात ये भी है कि, क्या कभी PoK के लिए कांग्रेस नेता इसी ताकत से आवाज़ उठाते दिखाई दिए हैं, खुद सत्ता में रहते हुए तो पार्टी ने कश्मीर को अलग संविधान दे रखा था, लेकिन सत्ता से बाहर होने के बाद भी क्या कभी सरकार पर जोर डालकर PoK वापस लेने की मांग की है ? उल्टा प्रथम पीएम जवाहरलाल नेहरू के समय से ही कश्मीर मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण कर दिया गया, उसे संयुक्त राष्ट्र (UN) में ले जाया गया, जैसे कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं, कोई विवादित जमीन हो। अक्साई चीन को तो पीएम नेहरू ने 'बंजर जमीन' बताते हुए पहले ही ख़ारिज कर दिया था, जब उसके जाने का ही कोई दुःख नहीं, तो उसे वापस लेने की कोशिश भी कौन करे। लेकिन इजराइल ने फिलिस्तीन की जमीन पर कब्ज़ा जरूर कर रखा है, ये हमें पता है और उसके लिए हम भारत में रहकर आवाज़ जरूर उठाएंगे, क्योंकि भारत में मुस्लिमों की संख्या यहूदियों से काफी अधिक है, और हमें वोट भी उन्ही के चाहिए। यदि भारत में यहूदी अधिक होते, तो हो सकता है कुछ अलग विचार किया जाता।
'हिंदुत्व और यहूदीवाद को उखाड़ फेंको..', भारत में जहर उगल गया 'हमास' का आतंकी, क्या कर रही थी सरकार ?