इस्लाम के अपमान का आरोप लगाकर काट दिया था प्रोफेसर टीजे जोसेफ का हाथ, केरल में 13 साल बाद हमले का मास्टरमाइंड गिरफ्तार

इस्लाम के अपमान का आरोप लगाकर काट दिया था प्रोफेसर टीजे जोसेफ का हाथ, केरल में 13 साल बाद हमले का मास्टरमाइंड गिरफ्तार
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कोच्चि: इस्लाम के कथित तिरस्कार (Blasphemy) के नाम पर केरल के प्रोफेसर टीजे जोसेफ (T J Joseph) का हाथ काटने के मामले में मुख्य साजिशकर्ता सवाद को राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने आख़िरकार 13 साल बाद अरेस्ट कर ही लिया है। NIA को मंगलवार (9 जनवरी 2024) की रात को आरोपित को हिरासत में लेने में सफलता मिली है। सवाद के सिर पर 10 लाख रुपए का इनाम घोषित था।

रिपोर्ट के अनुसार, बुधवार (10 जनवरी 2024) को मास्टरमाइंड सवाद को कोच्चि स्थित NIA दफ्तर लाया गया। आज से 13 वर्ष पूर्व 4 जुलाई 2010 को केरल के प्रोफेसर टीजे जोसेफ पर इस्लाम के अपमान का इल्जाम लगाकर उनका हाथ काट दिया गया था। इसके बाद से ही मुख्य आरोपित सवाद फरार था। NIA की भगोड़ा ट्रैकिंग विंग को एक इनपुट मिला था कि 37 वर्षीय सवाद कन्नूर के पास मट्टनूर में मौजूद है। इसके बाद NIA ने बेराम में स्थित एक किराए के मकान में दबिश दी और उसे हिरासत में ले लिया। सवाद यहाँ पिछले 5 माह से अपनी बीवी, दो बच्चों के साथ रह रहा था और बढ़ई का कारोबार कर रहा था।

आरोपी सवाद ने बेराम में शाहजहाँ की झूठी पहचान के साथ रह रहा था। वह मूल रूप से एर्नाकुलम के असमन्नूर के नूलेली में मुदस्सेरी हाउस का निवासी है। वहीं, उसकी बीवी कासरगोड़ की निवासी है। बेराम आने से पहले वह कन्नूर में कई जगहों पर फरारी काट चुका था और पुलिस को चकमा दे चुका था। बताया ये भी जाता है कि अपने कनेक्शंस के बल पर बीच में वह खाड़ी देशों में काम करने भी गया था।

उल्लेखनीय है कि, सवाद उन 7 लोगों के समूह में शामिल था, जिन्हें प्रतिबंधित कट्टरपंथी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) ने प्रोफेसर टीजे जोसेफ पर हमले के लिए चुना था। प्रोफेसर टीजे जोसेफ थोडुपुझा में स्थित न्यूमैन कॉलेज में मलयालम भाषा पढ़ाते थे। सावद ने प्रोफेसर पर यह हमला एर्नाकुलम के मुवत्तुपुझा में उनके घर के नजदीक ही किया था। वर्ष 2013 में दाखिल NIA की चार्जशीट के मुताबिक, सवाद ने प्रोफेसर के कार के शीशे तोड़ दिए और प्रोफेसर को जबरदस्ती बाहर निकाल लिया और उन पर चाकू और एक छोटी कुल्हाड़ी से वार कर दिया। परिवार के सदस्यों और बाकी लोगों को जोसेफ को बचाने से रोकने के लिए देशी बम फेंका था।

मास्टरमाइंड सवाद ने जोसेफ की दाहिनी हथेली काटते हुए कहा था कि, 'जिस हाथ ने इस्लाम का अपमान किया है, वह किसी काम का नहीं रहेगा।' इस वारदात को अंजाम देने के फौरन बाद सवाद बेंगलुरु फरार हो गया और वहाँ तकरीबन 13 वर्षों तक अंडरग्राउंड रहा था। उसके सिर पर NIA ने 10 लाख रुपए का इनाम रखा था। यही नहीं, सवाद के खिलाफ इंटरपोल रेड-कॉर्नर नोटिस भी जारी हुआ था। प्रोफेसर के हाथ काटने के इस मामले में लगभग 54 आरोपित थे, जिनमे से सवाद ही अकेला ही ऐसा आरोपित था, जो पुलिस को चकमा देकर लगतार फरार था। इस केस की सुनवाई NIA कोर्ट में दो चरणों में की गई थी। इसमें से 19 लोगों को दोषी करार दिया गया था।  

इसमें शामिल 10 आरोपितों को अप्रैल 2015 में UAPA के साथ-साथ विस्फोटक अधिनियम के तहत भी दोषी करार दिया गया था। बाकी के 3 आरोपितों को अपराधियों को पनाह देने का दोषी पाया गया था। वहीं, शेष अपराधियों पर साजिश रचने, हथियार मुहैया कराने, रेकी करने जैसे अपराध साबित हुए थे। 18 अन्य आरोपित सबूतों के आभाव में बरी कर दिया गया था। दूसरे चरण में 11 जुलाई 2023 को NIA की स्पेशल कोर्ट ने इस मामले में 6 आरोपितों को दोषी करार दिया था और 5 लोगों को बरी कर दिया था। नस्सर, साजिल, नजीब, नौशाद, कुंजू और अयूब को दोषी करार दिया गया था। 

क्या था मामला- 
दरअसल, एक परीक्षा में पूछे गए सवाल को पैगंबर का अपमान बताते हुए तोडुपुजा के न्यूमन कॉलेज में मलयालम साहित्य के पूर्व प्रोफेसर जोसफ पर जुलाई 2010 में PFI के कट्टरपंथियों ने हमला कर उनका बायां हाथ काट दिया था। उस समय वे अपनी मां और बहन के साथ चर्च से घर लौट रहे थे। इस मामले की जांच शुरू में केरल पुलिस और बाद में एनआईए ने की थी। वहीं साल 2015 में एनआईए अदालत ने मामले में फैसला सुनाया था। वहीं उसके बाद साल 2014 में प्रो. जोसफ की पत्नी शालोमी जोसफ ने आत्महत्या कर ली थी।

प्रोफेसर जोसफ ने आत्मकथा, ‘अविस्मरणीय यादें’ लिखी, जिसमें धार्मिक कट्टरता के बेहद भयावह अनुभव दर्ज किए हैं और अपने द्वारा भोगी दुखद घटनाओं का उल्लेख किया। जी हाँ और इसे केरल साहित्य अकादमी अवार्ड दिया गया था। इसी के साथ ही, अंग्रेजी में ‘अ थाउजेंड कट्स : एन इनोसेंट एंड डेडली आंसर्स’ नाम से अनुवाद किया गया। अपनी इस बायोग्राफी में प्रोफेसर टी जे जोसेफ ने बताया है कि जब वे कट्टरपंथियों के निशाने पर थे, तो कैसे कॉलेज प्रशासन से लेकर उनके तमाम सहयोगियों और यहाँ तक कि चर्च ने भी उनसे किनारा कर लिया था और उसी डिप्रेशन में उनकी पत्नी ने भी ख़ुदकुशी कर ली थी। उन्होंने बताया कि, 'कॉलेज के प्रिंसिपल और मैनेजमेंट ने शुरु-शुरू में मेरा साथ दिया, मगर समय के साथ उनके विचार बदल गए। ये जानने के बाद भी कि मैं निर्दोष हूँ, कॉलेज ने मुझ पर ईशनिंदा का इल्जाम मढ़कर, मुझे निलंबित कर दिया और बाद में नौकरी से निकाल दिया गया। चर्च ने मेरे परिवार को बहिष्कृत कर दिया।'

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