ग्लोबल वार्मिंग के चलते मूंगे की चट्टानें खतरे में

ग्लोबल वार्मिंग के चलते मूंगे की चट्टानें खतरे में
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मेलबर्न. समुद्र में बढ़ते तापमान के कारण मूंगे की चट्टानों को भारी खतरा है. वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि ग्लोबल वॉर्मिंग, ऑक्सीजन के गिरते स्तर और अम्लीकरण का महासागरों पर एक साथ बहुत भारी असर पड़ सकता है. एक रिपोर्ट ऑस्ट्रेलिया के ग्रेट बैरियर रीफ को संकट में बताती है. 


शोधकर्ताओं ने बीते चार दशक में पहली बार, भूमध्य रेखा के दोनों ओर के क्षेत्रों में कई स्थानों पर यह मापा है कि चट्टानों का रंग तेज गति से उड़ रहा है. साइंस नाम के जर्नल में प्रकाशित शोध बताता है कि रंग उड़ने की घटनाओं की अवधि का अंतराल घटा है तथा  परिस्थितिकी तंत्र के भविष्य पर खतरा मंडरा रहा है और इससे लाखों लोगों की आजीविका भी खतरे में पड़ सकती है. 


आस्ट्रेलिया स्थित एआरसी सेंटर ऑफ एक्सीलेन्स फॉर कोरल रीफ स्टडीज के निदेशक टेरी हजेस ने बताया कि 1980 के दशक में जहां मूंगे का रंग उड़ने की घटना 25 से 30 साल की अवधि में एक बार होती थी वहीं अब बीते तीन चार दशकों में  इसमें पांच गुना वृद्धि देखी गई है. वर्ष 2010 के बाद से तो औसतन हर छह साल में ऐसा एक बार हो रहा है.  उन्होंने बताया कि इस बदलाव का मुख्य कारण तापमान में लगातार हो रही वृद्धि है.


वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट में सीनियर एसोसिएट लॉरेटा बर्क का मानना है कि मूंगा चट्टानें दुनिया भर में लाखों लोगों के लिए बहुमूल्य संसाधन हैं. हालात खराब होने के बावजूद उम्मीद की किरण भी है. उनके मुताबिक स्थानीय दबावों को कम करके इस समस्या का हल निकल सकता है.

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