इस्लाम धर्म में दिन और त्यौहार का निर्धारण हिजरी कैलेंडर के द्वारा होता है. इस कैलेंडर का नौवा महीना रमज़ान का होता है, जिसे अरबी भाषा में रमदान कहा जाता हैं. इस पाक महीने में अल्लाह की इबादत करते हुए सभी मुस्लिम भाई-बहन रोज़े रखकर अल्लाह से बरक़तें मांगते है. इस महीने में रोज़दार पूरा दिन निर्जल और निराहार रहकर अल्लाह की बताई हुई नसीहतों को पढ़ते है और अपने मैन को शांत और अल्लाह की इबादत में लगाए रखते है.
इस्लाम धर्म की नींव मानी जानें वाली क़ुरान में रमज़ान और रोज़े से जुड़ी हुई कुछ महत्वपूर्ण नसीहतें लिखी गई है जिसमे रोज़दार के रोज़ा रखने का सबब होता है. क़ुरान के इन नसीहतों में रमज़ान को रहमतों और बरकतों वाला महीना कहा गया है. इन नसीहतों में रमज़ान में समय किये जानें वाले कामों की ताकीद की गई है. इन नसीहतों में जीवन का मूलमंत्र छुपा हुआ है.
क़ुरान को इस्लाम धर्म में सर्वोपरि माना जाता है. इसकी नसीहतों को जो भी रोज़दार अपने रोज़े में अपनाता है उस पर अल्लाह की रहमतें और बरकतें आती हैं. रमज़ान से जुड़ी क़ुरान की कुछ नसीहतें इस प्रकार है. जिनका अर्थ रोज़दार के जीवन को अत्यधिक प्रभावित करता है. यह नसीहते है - "रमज़ानुल मुबारक की सबसे अज़ीम नेअमत कुरआन है" तथा "रमज़ान में अल्लाह की खास रहमते उतरती हैं जिससे बरकत होती है" .
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