नई दिल्ली: SBI Research की एक रिपोर्ट ने भारत की वर्तमान वृद्धि दर को 'हिंदू वृद्धि दर' के काफी करीब बताने वाले भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के बयान को पक्षपातपूर्ण, अपरिपक्व और बगैर सोचा-समझा हुआ बताते हुए मंगलवार (7 मार्च) को सिरे से खारिज कर दिया। SBI रिसर्च की रिपोर्ट इकोरैप (Ecowrap) कहती है कि देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर के हाल में आए आंकड़े और बचत एवं निवेश के मौजूद आंकड़ों को देखने पर इस प्रकार के बयानों में कोई आधार दिखाई नहीं देता है। इस रिपोर्ट के अनुसार, तिमाही आंकड़ों के आधार पर GDP वृद्धि को लेकर व्याख्या करना वास्तविकता को छिपाने वाले भ्रम को फैलाने एक प्रयास जैसा है।
बता दें कि, इससे पहले रघुराम राजन ने भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि कोरोना महामारी के चलते आई मंदी से उबरने में भारत को कई वर्ष लग जाएंगे। हालाँकि, भारत एक साल में ही अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में सफल रहा। वह पिछले 5 सालों से निरंतर भारत में आने वाले आर्थिक संकट को लेकर भविष्यवाणी कर रहे हैं। हालाँकि, उनकी ऐसी तमाम भविष्यवाणी गलत साबित हो रहीं हैं। बता दें कि, राजन 2013 से 2016 तक RBI के गवर्नर पद पर रहे थे। इस दौरान देश स्थिर विदेशी मुद्रा भंडार सहित कई अन्य विवादों से घिरा रहा। हालाँकि, उनके पद से हटने के बाद से RBI का विदेशी मुद्रा भंडार 600 बिलियन से ज्यादा हो गया है। यह एक ऐसा आँकड़ा है जो भारतीय इतिहास में विदेशी मुद्रा भंडार का एक रिकॉर्ड है।
अब दो दिन पहले RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने एक इंटरव्यू में कहा था कि GDP ग्रोथ के आंकड़े इसके खतरनाक रूप से 'हिंदू वृद्धि दर' के बेहद नजदीक पहुंच जाने का इशारा कर रहे हैं। उन्होंने इसके लिए निजी निवेश में गिरावट, उच्च ब्याज दरों और धीमी पड़ती वैश्विक वृद्धि जैसे कारकों को जिम्मेदार करार दिया था। बता दें कि, हिंदू वृद्धि दर शब्दावली का इस्तेमाल भारत की आज़ादी के बाद 1950-80 के दशक में देश की 3.5 फीसद की औसत वृद्धि दर के लिए किया गया था। भारतीय अर्थशास्त्री राज कृष्णा ने सबसे पहले 1978 में 'हिंदू वृद्धि दर' शब्द का प्रयोग किया था। हालाँकि, आज़ादी के बाद देश की बागडौर पीएम जवाहरलाल नेहरू के हाथ में थी और देश की आर्थिक नीतियां बनाने में उनका अहम योगदान होता था, ऐसे में उस काल की औसत वृद्धि दर के लिए कुछ जानकार 'नेहरू वृद्धि दर' शब्दावली का भी इस्तेमाल करते हैं।
हालाँकि, देश के सबसे बड़े बैंक SBI की रिसर्च टीम द्वारा जारी रिपोर्ट में रघुराम राजन के इस दावे को सिरे से ख़ारिज कर दिया गया है। रिपोर्ट कहती है कि, तिमाही आंकड़ों को आधार बनाकर किसी भी गंभीर व्याख्या से परहेज करना चाहिए। GDP वृद्धि के हालिया आंकड़ों और बचत एवं निवेश संबंधी परिदृश्य के मद्देनज़र हमें इस प्रकार की दलीलें पक्षपातपूर्ण, अपरिपक्व और बिना सोची-समझी प्रतीत होती हैं। SBI के समूह मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने यह रिपोर्ट तैयार की है। घोष ने कहा है कि पिछले दशकों के निवेश एवं बचत आंकड़े कई दिलचस्प पहलू रेखांकित करते हैं।
रिपोर्ट कहती है कि सरकार की ओर से सकल पूंजी सृजन (GCF) वित्त वर्ष 2021-22 में 11.8 फीसद हो गया है, जबकि 2020-21 में यह 10.7 फीसद था। इसका प्राइवेट सेक्टर के निवेश पर भी असर पड़ा और यह इस दौरान 10 फीसद से बढ़कर 10.8 फीसद पर पहुंच गया। रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 में कुल मिलाकर सकल पूंजी सृजन के बढ़कर 32 फीसद हो जाने की उम्मीद है। पिछले वित्त वर्ष में यह 30 फीसद और उसके पहले 29 फीसद रहा था।
ग्रॉस सेविंग में भी हुआ वृद्धि:-
इसके साथ ही सकल बचत भी वित्त वर्ष 2021-22 में बढ़कर 30 फीसद हो गई, जो उसके एक साल पहले 29 फीसद थी। मौजूदा वित्त वर्ष में इसके 31 प्रतिशत से अधिक रहने की संभावना है, जो 2018-19 के बाद का सर्वोच्च स्तर होगा। हालांकि यह रिपोर्ट कहती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की संभावित वृद्धि दर पहले के अनुपात में अब कम रहेगी। उस लिहाज से भी देखें तो 7 फीसद की GDP वृद्धि दर किसी भी मानक से एक अच्छी दर है।
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