राहत इंदौरी का आज 1 जनवरी को जन्मदिन है, राहत इंदौरी का जन्म 1 जनवरी 1950 को हुआ। नए वर्ष में हम काव्य चर्चा के अंतर्गत राहत इंदौरी साहब के 10 बड़े शेर आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं। वह अपने शेर में प्रत्येक लफ़्ज़ के साथ मोहब्बत की नई शुरुआत करते हैं। राहत मोहब्बत को आदमी का अधिकार मानते हैं। लिहाजा उनके शेर वजनदार होते हैं।
* नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है
* रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं...
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है
* ये हवाएं उड़ न जाएं ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो
* रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है...
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चांद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है
* उस की याद आई है सांसों ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा...
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पांव का कांटा हमीं से निकलेगा
* मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग
गीली ज़मीन खोद के फ़रहाद हो गए
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है...
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते
* हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं,
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिन्दुस्तान कहते हैं
* जो दुनिया में सुनाई दे उसे कहते हैं खामोशी
जो आंखों में दिखाई दे उसे तूफान कहते हैं
जवान आंखों के जुगनू चमक रहे होंगे...
जवान आंखों के जुगनू चमक रहे होंगे
अब अपने गांव में अमरुद पक रहे होंगे
* भुलादे मुझको मगर, मेरी उंगलियों के निशान
तेरे बदन पे अभी तक चमक रहे होंगे
नीरा उत्पादन में लगे लोगों को नीतीश सरकार का बड़ा तोहफा, मिलेगी ये मदद
चीन के कट्टर दुश्मन को ब्रम्होस मिसाइल बेचेगा भारत, ड्रैगन को लग सकती है मिर्ची
महज 24 घंटे में 9 आतंकी ढेर, सुरक्षाबलों ने लिया पुलिस पर हमले का बदला