कश्मीर के पत्थरबाजों के लिए रहमदिल राज्य सरकार !

कश्मीर के पत्थरबाजों के लिए रहमदिल राज्य सरकार !
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देश के ताज का तमगा और धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर के वर्तमान हालातों से पूरी दुनिया वाकिफ है, कि वहाँ अलगाव की आग को हवा देने में पाकिस्तान का हाथ है. वह स्थानीय युवा कश्मीरियों को भड़का कर उनके हाथों में पत्थर थमा कर सुरक्षा बलों की आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई में बाधा खड़ी कर रहा है.जुलाई में जब से बुरहान वानी का एनकाउंटर हुआ है, तब से यह घटनाएं ज्यादा बढ़ गई है. ऐसा नहीं है कि इन घटनाओं को रोकने के लिए प्रयास नहीं हो रहे हैं, लेकिन जम्मू -कश्मीर की बीजेपी -पीडीपी गठबंधन सरकार चाहकर भी इन पत्थरबाजों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं कर पा रही है,जैसे अपेक्षित है. दूसरे शब्दों में कहें तो राज्य सरकार रहमदिल नजर आ रही है. यह नीचे दिए जा रहे विश्लेषण से स्वतः सिद्ध हो जाएगा.

यह तो सभी जानते हैं कि पाकिस्तान किसी भी रूप में कश्मीर को हथियाना चाहता है. इसके लिए वह आतंकवादियों का सहारा लेकर बरसों से छद्म युद्ध लड़ रहा है.फर्क इतना है कि पहले की नेशनल कांफ्रेंस और काँग्रेस ग ठबंधन सरकार की पाकिस्तान परस्ती साफ़ नजर आती थी, लेकिन अब पीडीपी से हाथ मिलाकर सत्ता में काबिज होने वाली बीजेपी कुछ कार्रवाई करती नजर तो आ रही है, लेकिन पूरी सफलता नहीं मिली है, क्योंकि कई मामलों में पीडीपी का असहयोग उसे रोक देता है.राष्ट्रवाद के ठप्पे के साथ केंद्र में बैठी बीजेपी की दिक्कत यह है कि उसे पिछले चुनाव में कश्मीर में बहुमत नहीं मिला तो उसने पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बना ली लेकिन अलगाववादियों के खिलाफ कार्रवाई में उसे अपेक्षित नतीजे नहीं मिल पा रहे हैं. राज्य की मुख्यमंत्री मेहबूबा के कुछ अधिकारों और धारा 370 के कारण उसे खुलकर कुछ करने का मौका नहीं मिल रहा है.भाजपा की यह तड़प देखी जा सकती है.

उधर, सीएम मेहबूबा मुफ़्ती की अपनी परेशानियां हैं.राज्य में वह भी अलगाववादियों और पत्थरबाजों केखिलाफ कार्रवाई इसलिए नहीं कर पा रही है, क्योंकि अंततः उसे राज्य के उन्हीं बाशिंदो के बीच रहना है. अन्यथा सुरक्षा बलों को फ्री हैंड दिए जाने पर यह तस्वीर बदली जा सकती है. बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद पत्थरबाजों के खिलाफ जब सुरक्षा बलों ने पेलेट गन का उपयोग किया तो चारों ओर से विरोध के स्वर उठने लगे.इसमें मानवाधिकार की बात करने वालों की आवाज सबसे ज्यादा बुलंद थी.इसमें राज्य सरकार भी शामिल थी .मजबूर होकर पेलेटगन का उपयोग रोकना पड़ा.अभी हाल ही में कश्मीर बार एसोसिएशन द्वारा पेलेटगन के खिलाफ दाखिल की गई याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि हम सरकार को पेलेट गन का उपयोग रोकने को कह देंगे लेकिन इसकी क्या आप भरोसा दिलवाएंगे कि अब पत्थरबाजी नहीं होगी. यदि इस बारे में सकारात्मक जवाब आया तो आगे फैसला लेगी. पहले विरोध प्रदर्शन रोको .फिर सुनवाई होगी.सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू -कश्मीर हाई कोर्ट से घाटी में उत्पन्न हालातों को सुधारने के सुझाव भी मांगे हैं.अगली सुनवाई 9 मई को है.

अभी एक नई जानकारी आई है कि पूरा कश्मीर अलगाववादियों का पक्षधर नहीं है. केवल श्रीनगर,अनंतनाग, पुलवामा, कूपवाड़ा जैसे पांच जिले हैं जहाँ यह गतिविधियां अलगाववादी गतिविधियां ज्यादा है.यहां पाकिस्तान युवा लड़कों को भड़का कर उन्हें भारत के खिलाफ खड़ा कर रहा है.हाथों में पत्थर थामे यह युवा पाक की कठपुतली बने हुए हैं. अब तो लड़कियों के हाथों में भी पत्थर आ गए हैं.जो समस्या के बढ़ने के संकेत हैं.सुझाव यह है कि समझाईश के अलावा इन हिंसाग्रस्त पांच जिलों को फोकस कर यहां सख्त कार्रवाई में राज्य सरकार दिल से सहयोग करे तो परिणाम मिल सकते हैं. लेकिन इसके लिए राज्य सरकार को रहमदिली छोड़ना पड़ेगी. दृढ इच्छाशक्ति का परिचय देना पड़ेगा.

कश्मीरवासियों के लिए ' खाए खसम का, और गीत गाए वीरा का' कहावत पूरी तरह लागू हो रही है, क्योंकि वह भारत में रहकर, यहां की सुविधाओं का उपभोग करने के बावजूद पाकिस्तान के प्रति सहानुभूति रखते हैं.अन्यथा कोई कारण नहीं कि इस समस्या का समाधान न हो. जब भी सुरक्षा बल कोई कार्रवाई करते हैं तो स्थानीय नागरिक इसका विरोध करने खड़े हो जाते हैं.वे तन से तो भारत के साथ रहना चाहते हैं लेकिन मन से पाकिस्तान को चाहते हैं . समस्या की जड़ यही है. इसीलिए पाकिस्तान कश्मीर में जनमत संग्रह करवाने की मांग करता रहता है. वह इसे कश्मीर समस्या के समाधान का रास्ता मानता है.जबकि भारत इस मांग को कभी स्वीकार नहीं करेगा. इसी ऊहापोह में आजादी के बाद इतने बरस बीत गए लेकिन नतीजा नहीं निकल पाया. मन को तो न रोका जा सकता है और न उस पर पाबंदी लगाई जा सकती है. इसलिए कश्मीर समस्या हनुमान जी की पूंछ की तरह बढ़ती जा रही है.

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