राहुल गांधी ने मांगे दो मिनिट, लोकसभा स्पीकर बोले- पूरा वक़्त लीजिए, डिटेल में बोलिए..! फिर क्यों स्थगित हुआ सदन ?

राहुल गांधी ने मांगे दो मिनिट, लोकसभा स्पीकर बोले- पूरा वक़्त लीजिए, डिटेल में बोलिए..! फिर क्यों स्थगित हुआ सदन ?
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नई दिल्ली: संसद सत्र का पांचवा दिन एक बार फिर विपक्ष के हंगामे की भेंट चढ़ गया। लोकसभा और राज्यसभा, दोनों सदनों में NEET परीक्षा के मुद्दे पर विपक्षी सदस्यों ने जमकर हंगामा किया और नारे लगाए। लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने सदन की कार्यवाही आरंभ होते ही NEET का मुद्दा उठाया। राहुल ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा शुरु होने से पहले NEET पर चर्चा की मांग रखी, जिस पर लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने उन्हें अनुमति दे दी। स्पीकर ने कहा कि राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान आप किसी भी विषय पर बोलने के लिए स्वतंत्र हैं।

इससे पहले, लोकसभा शुरू हुई, तो पीठासीन ओम बिरला ने सदन के 13 पूर्व सदस्यों के निधन की सूचना दी, जिसके बाद उनके लिए 2 मिनट का मौन रखकर शोक व्यक्त किया गया। इसके बाद लोकसभा अध्यक्ष ने सभी सदस्यों से अपने नाम के आगे अंकित प्रपत्र सभा पटल पर रखने को कहा। इस पर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने NEET पर चर्चा की मांग रखी। उनकी बात सुनकर स्पीकर ओम बिरला ने कहा कि राष्ट्रपति के अभिभाषण पर आप किसी भी विषय पर डिटेल में बोल सकते हैं और सरकार उसका जवाब देगी।

इसके बाद रायबरेली से सांसद राहुल गांधी ने स्पीकर से दो मिनट का वक़्त मांगा। जिसपर अध्यक्ष बिरला ने कहा कि आप दो मिनट नहीं, जितना आपकी पार्टी का वक़्त है आप वो पूरा ले सकते हैं। आप विपक्ष के नेता हैं, पूरा वक़्त लीजिए और संसदीय मर्यादाओं का पालन करते हुए डिटेल में बोलिए। इसके बाद कांग्रेस ने आरोप लगा दिया कि, बोलते बोलते राहुल गांधी का माइक बंद कर दिया गया है। तब ओम बिरला ने उन्हें समझाते हुए कहा कि माननीय सदस्य, मैं माइक बंद नहीं करता हूं, यहां मेरे पास कोई बटन नहीं है। तब राहुल गांधी ने कहा कि हिंदुस्तान के जो छात्र हैं, उन्हें जॉइंट मैसेज देना चाहते थे। इसीलिए हमने सोचा था कि स्टूडेंट के इस मुद्दे पर हम डिटेल में चर्चा करें।

लेकिन, इसके बाद विपक्ष के सदस्य सदन में हंगामा और नारेबाजी करने लगे। हंगामे के बीच स्पीकर ओम बिरला ने सदन की कार्यवाही दोपहर 12 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया। हालाँकि, जब 12 बजे लोकसभा फिर शुरू हुई, तो संसद में फिर से हंगामा शुरू हो गया और राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद् प्रस्ताव हो ही नहीं सका, जिस दौरान NEET पर भी चर्चा हो सकती थी। लेकिन विपक्षी हंगामे के कारण, लोकसभा को सोमवार तक के लिए स्थगित कर दिया गया। 

कई बार, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विपक्षी सदस्यों को शांत करते हुए कहा कि संसद को न चलने देना संसदीय लोकतंत्र के विरुद्ध है। उन्होंने कहा कि सदस्य राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान आप NEET पर बोलिए, इसकी इजाजत है, सरकार जवाब देगी। लेकिन फिर भी विपक्ष का हंगामा जारी रहा और एक ये आरोप भी लगाया गया कि, राहुल गांधी का माइक बंद कर दिया गया, जिस पर लोकसभा अध्यक्ष को कहना पड़ा, माननीय सदस्यगण यहाँ मेरे पास कोई बटन नहीं है, जिससे मैं माइक बंद कर दूँ। 

इसके बाद संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजीजू ने एक बयान में कहा कि संसद के इतिहास में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ है। आज कांग्रेस पार्टी और उसके साथी दलों ने सदन की गरिमा को ताक पर रख दिया है, वे राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा का विरोध करते हुए वेल तक आ गए हैं। 

क्या है माइक बंद करने का सिस्टम, कई बार आरोप लगा चुकी है कांग्रेस :-

ये पहली बार नहीं है, जब कांग्रेस ने राहुल गांधी का माइक बंद करने का आरोप लगाया हो। पिछली लोकसभा में भी कई बार ये आरोप सरकार पर लग चुके हैं। लेकिन विपक्ष इन आरोपों को साबित नहीं कर पाता कि क्या वाकई सरकार या पीठासीन अध्यक्ष ने विपक्ष के नेता को बोलने से रोकने के लिए उसका माइक बंद किया है ? ऐसे में जनता भ्रम में रहती है, कुछ सोचते हैं कि उनकी आवाज़ दबाई जा रही है, वहीं कुछ मानते हैं कि आरोप निराधार हैं। अगर विपक्ष को ऐसा लगता है, तो वो सुप्रीम कोर्ट जाकर एक बार अपना आरोप साबित कर दे, तो जनता के सामने भी दूध का दूध पानी का पानी हो जाए। मौजूदा मामले में तो ओम बिरला, राहुल गांधी को 2 मिनट की जगह पूरा टाइम देते हुए दिखाई दे रहे हैं, फिर उनके पास माइक बंद करने का क्या कारण होगा ? और क्या अध्यक्ष की गद्दी पर बैठा कोई नेता माइक बंद कर सकता है ? क्या उसके आसपास ऐसा कोई बटन होता है ? तो चलिए संसद में माइक को भी थोड़ा समझ लेते हैं।    

ये तो सभी जानते हैं कि, सदन में हर सांसद की सीट निर्धारित होती है, उसी सीट पर माइक्रोफोन डेस्क से जुड़ा हुआ होता है। इनका अपना एक नंबर होता है। संसद के दोनों सदनों में एक चैंबर रहता है, जहां साउंड टेक्नीशियन अधिकारी बैठते हैं। ये सदन से संबंधित अधिकारी ही होते हैं, जो लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही को लिप्यंतरित और रिकॉर्ड करते हैं। चैंबर के अंदर ही एक इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड होता है। यहां पर माइक्रोफोन चालु या बंद करने का विकल्प होता है, सदन के अध्यक्ष के पास इसका बटन नहीं होता। चैंबर में लगे ग्लास के माध्यम से ये अधिकारी सदन की कार्यवाही को लाइव देखते हैं। ये चैंबर लोकसभा के मामले में लोकसभा सचिवालय के कर्मचारियों द्वारा और राज्यसभा के मामले में राज्यसभा सचिवालय के कर्मचारियों द्वारा संचालित होते हैं। 

एक्सपर्ट और संसद कवर कर चुके कुछ वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि माइक को चालू और बंद करने की एक तय प्रक्रिया है। उनका कहना है कि माइक उन चैंबर्स से ही बाद होता है, हालाँकि, सदन के अध्यक्ष नियमों के अनुसार ही माइक्रोफोन को बंद करने का निर्देश दे सकते हैं। आम तौर पर सदन में हंगामा होने के दौरान ऐसा किया जाता है, ताकि रिकॉर्ड पर कोई अवांछित सामग्री ना जाए और केवल स्पष्ट आवाज़ और तथ्य ही सदन की कार्यवाही में रिकॉर्ड हों। दोनों सदनों में माइक्रोफोन को मैन्युअल रूप से चैंबर में बैठे अधिकारियों द्वारा चालू और बंद किया जाता है। जब सदन में हंगामा चरम पर होता है, तो अधिकारियों द्वारा माइक बंद कर दिए जाते हैं। इस दौरान स्पीकर, सांसदों को शांत रहने की और समझाने की कोशिश करते हैं, फिर भी अगर सदस्य ना मानें, तो सदन स्थगित कर दिया जाता है। 

DMK के राज्यसभा सांसद और जाने-माने वरिष्ठ वकील पी विल्सन बताते हैं कि सदन की कार्यवाही शुरू होने के समय, राज्यसभा के सभापति के निर्देश पर माइक चालू किए जाते हैं। जब कोई सदस्य संबोधन देता है, तो उसका माइक चालू कराया जाता है, जबकि दूसरों का बंद रहता है, ताकि रिकॉर्ड पर स्पष्ट चीज़ें जाएं। विल्सन ये भी कहते हैं कि संसद के शून्य काल में एक सदस्य को बोलने के लिए तीन मिनट का वक़्त दिया जाता है। जब तीन मिनट पूरे हो जाते हैं, तो अपने आप ही माइक बंद हो जाता है। जब किसी विधेयक या मुद्दे पर चर्चा की जाती है, तो सभी पक्षों को वक़्त दिया जाता है। पीठासीन प्रमुख, अपने विवेक के हिसाब से सदस्यों को बोलने के लिए वक़्त देते हैं, ताकि सबकी बारी आए।   

सभी एक्सपर्ट्स की एक राय है कि समर्पित और प्रशिक्षित स्टाफ ही लोकसभा और राज्यसभा में पूरे माइक्रोफोन सिस्टम को संचालित करता है। यह सब दिशानिर्देशों के अनुसार ही चलती है। DMK के राज्यसभा सांसद पी विल्सन ने बताया कि हंगामे के दौरान, सदस्य तेज आवाज़ में चिल्लाते हैं, ऐसे में सदस्यों के नजदीक जो माइक होता है, उससे आवाज सुनाई देती है और वही कार्यवाही में रिकॉर्ड हो जाती है। ये भी एक कारण है कि, चैम्बर में बैठा स्टाफ हंगामे के समय माइक बंद कर देता है। 

अब ये भी गौर करिए कि, सत्ता पक्ष, चाहे वो किसी भी पार्टी का हो, उसकी इच्छा यही रहती है कि, सदन सुचारु रूप से चले। क्योंकि सत्ता पक्ष के पास ही विशेष संसदीय सत्र बुलाने की शक्ति होती है और सरकार के अपने कानून बनाने के लिए सदन में शांति और सुचारुता चाहिए होती है। यदि हंगामे के कारण सदन स्थगित होते जाएंगे, तो सरकार नियम, नीतियां कैसे बनाएगी ? अगर बिना सदन के वो अध्यादेश लाती है, तो विपक्ष ये कहते हुए विरोध कर सकता है कि हमारी सहमति नहीं ली गई, हमसे चर्चा नहीं की गई, फिर अध्यादेश के भी 6 माह के अंदर किसी ना किसी तरह सदन में पारित कराना सरकार की ही जिम्मेदारी रहती है, लेकिन वहां फिर हंगामे का डर। विपक्ष का काम है, सरकार की नीतियों की कमियां निकालना और उसका विरोध कर उसमे सुधार करवाना, किन्तु अधिकतर समय ये देखने के मिलता है कि कार्यवाही शुरू होती है हंगामे के साथ, फिर सदन स्थगित होता है, और काम लंबित रह जाते हैं। बता दें कि, सदन में प्रति मिनट ढाई लाख रुपए से अधिक खर्च होता है, यानी एक घंटे का लगभग डेढ़ करोड़, अब ये पैसा तो जनता का ही है, जो नेताओं के हो हल्ले हंगामे के कारण व्यर्थ हो जाता है।   

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