इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पी वी नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह जैसे दिग्गजों की सरकार में सेवाएं दे चुके गुलाम नबी आजाद को आखिर कांग्रेस से अपना 50 साल पुराना रिश्ता क्यों तोड़ना पड़ा ? अगर आजाद के इस्तीफे पर नज़र डालें तो, राहुल गांधी उनके इस्तीफे की सबसे बड़ी वजह नजर आते हैं। अपने इस्तीफे में आजाद ने राहुल को बचकाना, अपरिपक्व बताते हुए यहां तक कह दिया था कि पूरी कांग्रेस रिमोट कंट्रोल से चल रही है और राहुल के पीए तथा सुरक्षाकर्मी पार्टी के फैसले ले रहे हैं, जिससे पार्टी को नुकसान हो रहा है। बहरहाल, कांग्रेस ने भी इस पर ध्यान दिया और भारत जोड़ो यात्रा शुरू की।
3570 किमी की यात्रा में कांग्रेस ने सिर्फ अलग—अलग राज्यों का ही दौरा नही किया, बल्कि ये स्थापित करने का पुरजोर प्रयास किया कि राहुल गांधी की ‘अपरिपक्व राजनेता’ वाली छवि धुल जाए और जनता उन्हें एक धीर—गंभीर और ‘तपस्वी’ नेता के रूप में स्वीकार कर ले। लेकिन मंगलवार (7 फरवरी) को संसद में जो घटनाक्रम देखने को मिला, उसने कांग्रेस और राहुल गांधी की लगभग 150 दिन की मेहनत पर पानी फेर दिया।
राहुल गांधी और अग्निपथ :–
वैसे तो कांग्रेस पार्टी शुरू से ही सेना में भर्ती के लिए शुरू की गई अग्निपथ योजना (अग्निवीर) का विरोध करती रही है, जब योजना लॉन्च हुई थी, उस समय तो युवाओं को भड़काकर सड़क पर उतार दिया गया था और देश की करोड़ों की संपत्ति स्वाहा हो गई। लेकिन वक्त गुजरा, और जब युवाओं को योजना समझ में आई, तो ‘अग्निविर’ बन देशसेवा करने के लिए तीनों सेनाओं में बंपर अर्जियां आईं और अब तो पहला बैच भी बनकर तैयार हो गया है। वरना, अग्निपथ को रद्द कराने के लिए आज भी आंदोलन चल ही रहा होता। लेकिन, कांग्रेस अभी भी इस योजना से खुश नहीं है। कांग्रेस ने उस समय भी विरोध किया था, जब अटलजी की सरकार में परमाणु परीक्षण किया गया था। हालांकि लोकतंत्र में विरोध करने का अधिकार सभी को प्राप्त है, किंतु राहुल गांधी ने संसद में कल जिस तरह से अग्निपथ पर सवाल उठाए, उससे देश में यही संदेश गया कि राहुल अब भी तथ्यों के साथ अपनी बात रखना नही सीख पाए हैं, उन्हे और मेहनत की जरूरत है।
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा कि उन्हें भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सेना के अधिकारियों और पूर्व सैनिकों ने बताया कि अग्निवीर योजना सेना की योजना नहीं है। इसे सेना पर थोपा गया है। इसे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल ने सेना पर थोपा और यह RSS का आइडिया है। राहुल ने कहा कि, 'सेना के रिटायर अफसर कह रहे हैं कि अग्निवीर योजना सेना की योजना नहीं है, यह RSS की तरफ से आई है। गृह मंत्रालय से आई है और इसे सेना पर थोपा गया है। ’ हालाँकि, राहुल गांधी की RSS से नफरत कोई नई नहीं है, जैसे पाकिस्तान RSS से नफरत करता है, भारत के कुछ कट्टरपंथी संगठनों और टुकड़े-टुकड़े गैंग की आँखों में भी संघ चुभता रहा है, उसी तरह राहुल भी आए दिन संघ पर तीखे आरोप लगाते रहे हैं।
अग्निपथ पर सेना प्रमुखों की प्रेस वार्ता :–
जब अग्निपथ योजना के खिलाफ युवाओं को भड़काया जा रहा था। उस समय खुद भारतीय सशस्त्रबलों के प्रमुखों ने प्रेस वार्ता करते हुए हर सवाल के जवाब दिए थे। रक्षा मंत्रालय के सैन्य मामलों के विभाग में अतिरिक्त सचिव लेफ्टिनेंट जनरल अनिल पुरी ने बताया था कि ‘ये रिफॉर्म लंबे समय से पेंडिंग था। साल 1989 में ये काम शुरू हुआ था।’ यानी राहुल गांधी जिसे RSS की योजना बता रहे हैं और कह रहे हैं कि NSA अजीत डोभाल ने इसे सेना पर थोपा, उस योजना पर खुद सेना 1989 से काम कर रही थी। जब केंद्र में राहुल के पिताजी राजीव गांधी की सरकार हुआ करती थी।
जनरल अनिल पुरी ने यह भी बताया था कि इस योजना की आवश्यकता क्यों पड़ी। और वे जब इन सभी सवालों का जवाब दे रहे थे, उस समय एयर फोर्स के प्रमुख एयर मार्शल सूरज कुमार झा, नौसेना के वाइस एडमिरल डीके त्रिपाठी, भारतीय आर्मी की तरफ से लेफ्टिनेंट जनरल सीबी पोनप्पा भी पत्रकारों के अग्निवीरों से जुड़े सवालों का जवाब देने के लिए वहां मौजूद थे।
जनरल पुरी ने बताया था कि, ये पूरा काम एक प्रक्रिया के तहत किया गया। बकौल जनरल पुरी, ‘हम चाहते थे कि कमांडिंग ऑफ़िसर की उम्र कम हो, टीथ-टू-टेल रेशियो कम हो। जिसके लिए एक-एक करके काम आरंभ किया गया, पहले कमांडिंग ऑफ़िसर की उम्र कम की गई, जो हमारी टीथ-टू-टेल रेशियो है, उसे घटाया गया। उसके बाद उसी चीज़ को आगे ले जाते हुए जो हमारा अगला रिफॉर्म था, वो था कि किसी तरह से हमारी सेना की जो औसत आयु आज 32 साल है, उसे किस तरह से 26 वर्ष तक लाया जाए।’
उन्होंने बताया था कि, वर्ष 2030 तक हमारे देश की 50 फ़ीसदी आबादी 25 वर्ष से कम होगी। इसका अध्ययन किया गया और बाहर के देशों की भी स्टडी की गई। और ये पाया गया कि यदि ऐसा किया जाता है, तो सेना में युवा जोश और अनुभव का ये एक आदर्श मेल होगा।
जैसा राहुल गांधी आरोप लगा रहे हैं कि अचानक इस योजन को लाकर सेना पर थोप दिया गया, उसका जवाब भी जनरल पुरी पहले ही दे चुके हैं। उन्होंने बताया था कि, इस योजना को लाने के लिए सेना के तीनों अंगों यानि थलसेना, वायुसेना और नौसेना में 500 घंटों की कुल 150 बैठकें की गईं। इसके अलावा रक्षा मंत्रालय में 150 घंटों की कुल 60 मीटिंग हुईं। सरकार के स्तर पर अलग से कुल 100 घंटों की 44 बैठकें इस योजना को लेकर की गई। उन्होंने यह भी बताया था कि अमेरिका, ब्रिटेन, रुस, चीन और इजरायल जैसे देशों की सेनाओं का अध्ययन करने के बाद ही अग्निवीर मॉडल को तैयार किया गया है।
राहुल ने संसद में यह भी कहा कि चार साल बाद युवाओं को सेना से निकाल दिया जाएगा। इस सवाल पर लेफ्टिनेंट जनरल पुरी ने कहा था कि, ‘प्रति वर्ष लगभग 17,600 लोग तीनों सेवाओं से समय से पहले सेवानिवृत्ति (VRS) ले रहे हैं। क्या किसी ने कभी उनसे यह पूछा है कि वे सेवानिवृत्ति के बाद क्या करेंगे।’
रही बात अग्निवीरों की तो, 25 फीसद अग्निविर सेना में ही आगे बढ़ा दिए जाएंगे। बाकियों के लिए, रक्षा मंत्रालय ने सभी राज्यों से कहा है कि पुलिस की भर्ती में अग्निवीरों को प्राथमिकता दी जाए, चार राज्यों ने तो इसका आश्वासन भी दे चुके हैं और आगे समय के साथ बाक़ी राज्य भी ऐसा करेंगे। वहीं, रक्षा मंत्रालय के 16 पीएसयू ने अभी तक अपनी नौकरियों में 10 फ़ीसदी अग्निवीरों को रिज़र्वेशन देने की घोषणा कर चुका है। गृह मंत्रालय ने केंद्रीय अर्धसैनिक बलों और असम राइफ़ल्स की नौकरियों में भी 10 फ़ीसदी आरक्षण का निर्णय लिया है। साथ ही कोस्टगार्ड ने भी भर्तियों में अग्निवीरों को वरीयता देने का ऐलान किया है। अब जब इतनी प्लानिंग के साथ अग्निपथ योजना को शुरू किया गया है, तो उसे RSS और अजीत डोभाल द्वारा थोपी गई योजना बताकर राहुल सिर्फ सेना का अपमान ही कर रहे हैं और खुद की 150 दिनों में बनाई गई छवि को मिट्टी में मिला रहे हैं ।
अडानी पर राहुल गांधी का दोहरा रवैया :–
राहुल गांधी, अडानी–अंबानी को तबसे कोसते आए हैं, जबसे मोदी प्रधानमंत्री बने हैं। शायद पूंजीपतियों को भला—बुरा कहकर, निम्न वर्ग और मध्यम वर्ग को अपनी तरफ आकर्षित करने की राहुल या कांग्रेस पार्टी की प्लानिंग हो। दरअसल, अमेरिकी फर्म हिंडनबर्ग की एक रिपोर्ट सामने आने के बाद भारतीय बाजार में उथल पुथल मच गई थी, ऐसा इसलिए क्योंकि हम आज भी अपने देश के लोगों से अधिक विदेशियों पर भरोसा करते हैं। ये चर्चाएं होने लगीं थीं कि अडानी कहीं देश का पैसा लेकर भाग तो नही जाएंगे। इस पर RBI ने बैंकों से जनकारी मांगी, तो जवाब मिला कि अडानी को जो कर्ज दिया गया है, वो उसे स्वीकृत किए गए लोन से काफी कम है। यानी अगर अडानी ग्रुप चाहता तो बैंक उसे खुशी खुशी और अधिक कर्ज देने को तैयार था। एक्सिस बैंक का कहना है कि, अडानी ग्रुप को बैंक की ओर से दिया गया कर्ज, कुल लोन का मात्र 0.94 प्रतिशत है और हम इसे लेकर सहज हैं, क्योंकि हम किसी भी कंपनी को सिक्योरिटी, देनदारी और लोन चुकाने की क्षमता के आधार पर ही लोन देते हैं। वहीं, SBI ने बताया था कि 27000 करोड़ रुपये का कर्ज दिया। PNB ने 7000 करोड़ और बैंक ऑफ बड़ौदा ने कुल 7,000 करोड़ रुपये का कर्ज दिया है। इन सभी बैंकों ने RBI को बताया है कि वे अपने कर्ज को लेकर चिंतित नहीं हैं, क्योंकि अडानी को दिया गया कर्ज RBI के बड़े एक्सपोजर फ्रेमवर्क से काफी कम है। बैंकों ने अपने लोन को लेकर किसी भी तरह की चिंता से इनकार किया है। बैंकों के जवाब के बाद RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि बैंक, संबंधित कंपनी की बुनियाद और संबंधित परियोजनाओं के लिये नकद प्रवाह की स्थिति पर गौर करने के बाद ही किसी कंपनी को लोन देते हैं। वहीं, डिप्टी गवर्नर एम के जैन ने कहा कि घरेलू बैंकों का अडाणी समूह को दिया गया कर्ज कोई बहुत अधिक नहीं है। शेयरों के बदले जो कर्ज दिया गया है, वह काफी कम है। यानी इस मामले में भारतीय बैंक और रिजर्व बैंक आश्वस्त हैं। अब आते हैं राहुल गांधी पर।
कांग्रेस नेता अशोक गहलोत क्यों दे रहे अडानी का साथ ?
संसद में राहुल गांधी ने सीधे प्रधानमंत्री पर आरोप लगाए हैं कि उन्होंने अडानी को विदेशों में ठेके दिलवाए। इस पर भाजपा ने उनसे सबूत मांगते हुए कहा कि जो व्यक्ति खुद, अपनी मां (सोनिया गांधी) और जीजा (रॉबर्ट वाड्रा) के साथ आर्थिक घोटाला करने के मामले में जमानत पर जेल से बाहर हो, वो इस तरह के निराधार आरोप न लगाए। भाजपा ने राहुल से अपने आरोपों के सबूत दिखाने के लिए कहा। जिस पर राहुल ने कहा कि दे देंगे। अब राहुल गांधी का दोहरा रवैया देखिए, एक तरफ तो वे आरोप लगा रहे हैं कि मोदी ने अडानी से देश लुटवा दिया, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस अपने राज्य में उसी अडानी को ठेके दे रही है। पिछले साल ही गांधी परिवार के विश्वासपात्र और राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने अडानी की तारीफों के पुल बांधे थे। उस समय अडानी ग्रुप ने राजस्थान में 65 हजार करोड़ का निवेश करने का ऐलान किया था। इस प्रस्ताव को कांग्रेस सरकार ने हंसते—हंसते मंजूर किया था और अडानी को अपने राज्य में जमीन भी आवंटित की थी। अब यदि राहुल गांधी के आरोपों को सही समझा जाए और अडानी को लुटेरा तो, कांग्रेस खुद क्यों उसका साथ दे रही है ? और जहां तक प्रधानमंत्री की बात है, तो राहुल गांधी ने पहले भी उनपर ‘चौकीदार चोर हैं’, जैसे बचकाने और स्तरहीन आरोप लगाए थे, जिसके बाद राहुल गांधी को अदालत में हाथ जोड़कर माफी मांगनी पड़ी थी। सोचा था ‘तपस्वी’ वेश में आने के बाद राहुल थोड़े गंभीर हो गए होंगे, लेकिन शायद अंदर से वे अब भी वही हैं, जो गुलाम नबी आजाद ने कहा था।
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