नई दिल्ली: 'भारत में सिखों को दूसरे दर्जे का नागरिक समझते हैं पीएम मोदी'। ये बयान था कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का ब्रिटेन में, इसके कुछ दिन बाद ही ब्रिटेन में भारतीय दूतावास पर खालिस्तानियों ने हमला कर दिया और भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का भी अपमान कर डाला। यहाँ ये नहीं कहा जा रहा कि, राहुल गांधी के बयान के कारण ही खालिस्तानियों ने हमला किया था, किन्तु भारत विरोधी ताकतें राहुल के इस बयान को हथियार की तरह सिखों को भड़काने के लिए जरूर इस्तेमाल कर सकती थी, या हो भी सकता है कि कर लिया हो। याद हो, जब राहुल गांधी ने अनुच्छेद 370 के खिलाफ एक बयान दिया था, जिसे पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र में भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया था। पाकिस्तान ने कहा था कि, 'अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद राहुल गांधी ने जम्मू-कश्मीर में लोगों की मौत का जिक्र किया था।' उस समय भारत को अपने ही नेता के बयान पर शर्मिंदा होना पड़ा था।
'सारे मोदी चोर हैं' मामले में भी सूरत कोर्ट ने राहुल गांधी को यही कहा था कि, 'आप एक सांसद हैं, आपको जिम्मेदारी से बोलना चाहिए क्योंकि, आपके बोलने का व्यापक प्रभाव पड़ता है।' लेकिन, इस बीच सवाल यह भी उठ रहा है कि, क्या इस मामले में राहुल को राहत मिल सकती थी। जरूर मिल सकती थी, यदि वो माफ़ी मांग लेते। क्योंकि, इससे पहले भी अदालत ने उन्हें तीन बार माफ़ी मांगने पर राहत दी है और मानहानि के अधिकतर मामले इसी तरह खत्म होते हैं। यदि आपने कुछ गलत नहीं कहा, तो उसे आप अदालत में साबित करो, या उत्तेजना में कुछ गलत कह दिया हो, तो खेद प्रकट करते हुए माफ़ी मांग लो। इसी तरह सीएम केजरीवाल ने भी मानहानि मामले में माफ़ी मांगकर केस ख़त्म किया था। उन्होंने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, गडकरी ने उन्हें कोर्ट में भ्रष्टाचार साबित करने की चुनौती दे दी। केजरीवाल को अपना आरोप साबित करने के लिए कुछ नहीं मिला और उन्होंने बिना शर्त माफ़ी मांग ली। इसी तरह केजरीवाल ने कपिल सिब्बल से भी माफ़ी मांगी थी। यही नहीं खुद राहुल गांधी भी कोर्ट में 3 बार माफ़ी मांग चुके हैं, लेकिन इस बार क्या हुआ?
शायद राहुल गांधी के वकीलों ने इस बार उन्हें ये सलाह दी कि वो माफी नहीं मांगे और इसी कारण कांग्रेस नेता इस मामले में फंसते चले गए और अब वो इसकी वजह से सांसद से पूर्व सांसद बन गए। बता दें कि, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, यदि किसी कोर्ट द्वारा किसी सांसद या विधायक को दोषी करार देते हुए 2 साल या उससे अधिक की सजा सुनाई जाती है, तो उस जनप्रतिनिधि की सदस्यता तत्काल प्रभाव से ख़त्म हो जाती है। ऐसे में राहुल गांधी की सदस्यता तो उसी समय समाप्त हो चुकी थी, जब उन्हें सूरत कोर्ट ने सजा सुनाई थी। लोकसभा स्पीकर की तरफ से केवल सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन किया गया।
चौकीदार चोर है पर मांगनी पड़ी थी माफ़ी :-
बता दें कि, 2019 के लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने राफेल डील मामले को लेकर एक भाषण में कह दिया था कि, अब तो सुप्रीम कोर्ट भी मान चूका है कि, 'राफेल डील में घोटाला हुआ है और चौकीदार ही चोर है।' इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को जमकर फटकार लगाई थी कि, आप अदालत का नाम लेकर ऐसा झूठ नहीं बोल सकते। जिसके बाद राहुल ने अपने बयान पर खेद जताया था। राहुल ने भविष्य में अदालत के हवाले से ऐसी कोई भी बात नहीं कहने की भी बात कही थी, जिसे न्यायालय ने न कहा हो। उसके लिए सुप्रीम कोर्ट में राहुल गांधी ने तीन बार माफीनामा पेश किया था । 22 पेज के दूसरे हलफनामे में एक जगह ब्रैकेट में 'खेद' शब्द लिखे जाने पर शीर्ष अदालत ने कड़ा रुख अपनाया, जिसके बाद आखिरकार राहुल ने तीसरा हलफनामा दाखिल कर बिना शर्त माफी मांग ली थी। लेकिन, इस बार उन्होंने सदन में और कोर्ट में दोनों जगह माफ़ी मांगने से इंकार कर दिया और उन्हें सजा हो गई, जिसके चलते उनकी सदस्यता भी चली गई।
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