नई दिल्ली: राजनीति में न तो कोई स्थायी दोस्त होता है, न कोई स्थायी दुश्मन, ये बात एक बार फिर सिद्ध हो गई है। 2024 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल एकजुट होकर मोदी सरकार के खिलाफ खड़े हुए थे। गठबंधन के तहत कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) ने सीटों का बंटवारा किया था, और गांधी परिवार जिस क्षेत्र के मतदाता हैं, वह सीट भी AAP के खाते में गई थी और पूरा गांधी परिवार झाड़ू (AAP) पर बटन दबा कर आया था। लेकिन चुनावी हार के बाद, दोनों पार्टियों के रास्ते अलग हो गए। अब दिल्ली विधानसभा चुनाव में यही नेता एक-दूसरे पर आरोपों की बौछार कर रहे हैं। केजरीवाल कांग्रेस को "भ्रष्टाचार का प्रतीक" बता रहे हैं, तो राहुल गांधी AAP पर "विफलताओं और झूठे वादों" का आरोप लगा रहे हैं।
इस चुनाव में कांग्रेस दिल्ली में अपना खोया हुआ राजनीतिक आधार वापस पाने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। इस बार पार्टी के सबसे बड़े चेहरे राहुल गांधी खुद प्रचार अभियान की शुरुआत करेंगे। आज सोमवार को वे सीलमपुर में एक जनसभा को संबोधित करेंगे। यह इलाका मुस्लिम बहुल है, जो कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक माना जाता है। लेकिन सवाल यह है कि राहुल गांधी क्या बीजेपी और AAP दोनों पर समान आक्रामकता से प्रहार करेंगे, या फिर उनका फोकस केजरीवाल पर ही रहेगा?
बहरहाल, दिल्ली चुनाव में भी कांग्रेस अपनी पुरानी रणनीति पर ही चल रही है, वादे, चुनावी वादे, जबरदस्त लोकलुभावन वादे, चाहे उन्हें पूरा किया जा सके या नहीं? इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, कांग्रेस ने चुनावी वादों की झड़ी लगा दी है। पार्टी ने बेरोजगारों को 8500 रूपए प्रति माह देने, हर नागरिक को 25 लाख का स्वास्थ्य बीमा, और महिलाओं को प्यारी दीदी योजना' के तहत 2500 प्रतिमाह की 'का ऐलान किया है। इसके अलावा, मुफ्त बिजली देने जैसे वादे भी किए जा सकते हैं। लेकिन इन लोकलुभावन वादों की सच्चाई पर सवाल उठ रहे हैं।
दिल्ली में कांग्रेस के 8500 बेरोजगारी भत्ते के वादे पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि इसका फंड कहां से आएगा ? कर्नाटक में कांग्रेस सरकार अपने 3000 बेरोजगारी भत्ते और 2000 'गृह लक्ष्मी योजना' को लागू करने में संघर्ष कर रही है। खुद कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने माना है कि इन चुनावी वादों के कारण राज्य का खजाना खाली हो चुका है और विकास के लिए पैसा नहीं बचा है। राज्य के आर्थिक सलाहकार बसवराज रायरेड्डी ने तो यहां तक कहा कि "मुफ्त योजनाएं सरकार पर भारी बोझ बन गई हैं।" ऐसे में, सवाल उठता है कि दिल्ली में कांग्रेस कर्नाटक से लगभग दोगुना आर्थिक बोझ कैसे उठाएगी? हालाँकि, अगर ये वादे महज चुनावी जुमला साबित होते हैं, तो इसे रोकने वाला कोई कानून नहीं है। राजनेता तो चुनावों में "ताजमहल बांटने" जैसे वादे भी कर सकते हैं। हमारे देश में ऐसा कोई नियम-कानून नहीं है, जो सरकार बनने के बाद उसे अपने वादे निभाने के लिए बाध्य कर सके। इसी कमज़ोरी का फायदा राजनेता उठाते हैं और अनाप-शनाप वादे कर देते हैं।
पुराने दोस्त, अब दुश्मन:-
दिल्ली के राजनीतिक मैदान में कांग्रेस और AAP के बीच जंग तेज हो गई है। कांग्रेस के नेताओं का आरोप है कि AAP ने दिल्ली को "नशे की राजधानी" बना दिया है। नवंबर-दिसंबर में कांग्रेस ने 'न्याय यात्रा' आयोजित की थी, जिसमें अरविंद केजरीवाल के कैरिकेचर वाले शराब की बोतल के गुब्बारे उड़ाए गए थे और एलईडी स्क्रीन पर AAP सरकार की "चार्जशीट" लाइव दिखाई गई थी।
कांग्रेस ने सीएम अरविंद केजरीवाल के खिलाफ पूर्व सीएम शीला दीक्षित के पुत्र संदीप दीक्षित को उतारा है। दीक्षित पहले से ही केजरीवाल और AAP पर तीखे हमले करते रहे हैं। वहीं, डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के क्षेत्र में फरहाद सूरी, और मंत्री आतिशी के खिलाफ अलका लांबा को टिकट दिया गया है। इन सीटों पर भाजपा के भी तगड़े उम्मीदवार मैदान में हैं, ऐसे में मुकाबला त्रिकोणीय और दिलचस्प होगा।
कांग्रेस की रणनीति में सबसे अहम भूमिका राहुल गांधी की होगी। मुस्लिम बहुल सीलमपुर की उनकी जनसभा में पार्टी को उम्मीद है कि वे AAP के दस साल के शासन पर आक्रामक हमला करेंगे। कांग्रेस का मानना है कि अगर राहुल अपनी रैलियों में BJP और AAP दोनों पर एक समान हमला करते हैं, तो इसका चुनावी लाभ पार्टी को मिल सकता है। हालांकि, कांग्रेस को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उनके हमले महज आरोप बनकर न रह जाएं। AAP ने विपक्षी दलों के कई बड़े नेताओं जैसे सपा, टीएमसी, आरजेडी, और शिवसेना (UBT) से समर्थन हासिल कर लिया है। इन दलों के प्रमुख नेता खुलकर AAP के पक्ष में बयान दे रहे हैं, जिससे कांग्रेस पर दबाव बढ़ गया है। INDIA गठबंधन के दलों ने कांग्रेस को दरकिनार करते हुए AAP का साथ देने का फैसला किया है, जिसका कारण कांग्रेस और गांधी परिवार के अहंकार को बताया जा रहा है कि वो अपने साथियों को सम्मान नहीं देती।
वहीं, कांग्रेस ने AAP की योजनाओं का मुकाबला करने के लिए खुद को 'दिल्ली के मसीहा' के तौर पर पेश करने की कोशिश की है। AAP की 'महिला सम्मान राशि' योजना के जवाब में कांग्रेस ने 'प्यारी दीदी योजना' की घोषणा की। AAP की 'संजीवनी योजना' के मुकाबले कांग्रेस ने ₹25 लाख के स्वास्थ्य बीमा का ऐलान किया। लेकिन सवाल उठता है कि इन वादों को पूरा करने के लिए फंड कहां से आएगा? दिल्ली का बजट पहले से ही स्वास्थ्य, शिक्षा, और अन्य सामाजिक योजनाओं पर केंद्रित है। ऐसे में कांग्रेस के ये वादे कितने व्यावहारिक हैं, इस पर सवाल उठना लाजमी है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की कोशिश है कि वह अपने पुराने मुस्लिम वोट बैंक को फिर से मजबूत करे, जो पिछले दो चुनावों से AAP की तरफ शिफ्ट हो गया है। केजरीवाल और मनीष सिसोदिया जालीदार टोपी पहने इफ्तार पार्टीयाँ करते हुए भी देखे गए हैं। इस वोट बैंक को वापस पाने के साथ ही, कांग्रेस को यह भी समझना होगा कि लोकलुभावन वादे केवल चुनाव जीतने का माध्यम नहीं हो सकते। अगर कांग्रेस अपनी योजनाओं की सच्चाई और व्यवहार्यता स्पष्ट नहीं करती, तो दिल्ली के मतदाता इसे गंभीरता से नहीं लेंगे।
कांग्रेस की रणनीति राहुल गांधी और उनकी रैलियों पर निर्भर है। अगर राहुल दिल्ली में आम आदमी पार्टी और बीजेपी दोनों पर आक्रामक हमला करते हैं, तो यह चुनावी मुकाबला और दिलचस्प हो सकता है। वहीं, कांग्रेस को यह भी तय करना होगा कि वह अपने वादों पर कैसे अमल करेगी, वरना ये चुनावी घोषणाएं महज एक और राजनीतिक तिकड़म बनकर रह जाएंगी।