भोपाल : आज मध्य प्रदेश की राजधानी में स्थित चिरायु मेडिकल कॉलेज में सीबीआई के द्वारा छापा मारा गया. बताया जा रहा है कि यह पूरा मामला फर्जी एडमिशन के इर्द गिर्द घूम रहा है. इसको लेकर यह आरोप लगाया जा रहा है कि कॉलेज प्रबंधकों के द्वारा नियमों की अनदेखी की गई है और बड़े पैमाने पर एडमिशन किए है. इन एडमिशन से करोड़ों रुपए कमाए गए है. अधिक जानकारी देते हुए यह भी बता दे कि मध्य प्रदेश के छह निजी कॉलेज जिनमें भोपाल का चिरायु मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, पीपल्स मेडिकल कॉलेज ऐंड रिसर्च सेंटर और एलएन मेडिकल कॉलेज ऐंड रिसर्च सेंटर, उज्जैन का आर.डी. गारदी मेडिकल कॉलेज, इंदौर का श्री अरविंदो इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज और इंडेक्ट्स मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल ऐंड रिसर्च सेंटर ने अपेलेट अथॉरिटी में एएफआरसी के आदेश को चुनौती दी थी.
इसके बाद जांच में इस बात की पुष्टि हुई थी कि निजी कॉलेजों में 2009 से 2013 के बीच दाखिले की आखिरी तारीख यानी 30 सितंबर को बड़े पैमाने पर पीएमटी के जरिए प्रवेश पाए छात्र अपना नाम कटवाते थे और उसी दिन निजी कॉलेज अपनी तरफ से इन सीटों पर नए छात्रों का प्रवेश कर देते थे. नियम के अनुसार यह बात सामने आई है कि इन सीटों पर पीएमटी की मेरिट वाले छात्रों को दाखिले का मौका मिलना चाहिए था, लेकिन कॉलेज प्रबंधन ने इस नियम को ताक पर रख मनमाने एडमिशन किए गए.
इसके अलावा यह भी सुनने में आया है कि कॉलेजों ने जानबूझकर ऐसी अपारदर्शी प्रक्रिया अपनाई ताकि योग्य छात्र काउंसिलिंग के लिए वहां उपस्थित ही ना हो सके. घोटाले को लेकर एक अन्य बात यह सामने आई है कि जहाँ पीएमटी में धांधली के जरिए एडमिशन पाए जाने पर व्यापम घोटाले में मेडिकल कॉलेजों के 1,000 से ज्यादा प्रवेश रद्द कर दिए गए और अनुचित लाभ पाने वाले छात्रों, यहां तक कि अभिभावकों के खिलाफ मुकदमे दर्ज हुए है, वहीं निजी कॉलेजों के मनमाने दाखिलों के मामले में एएफआरसी ने सिर्फ जुर्माने की सिफारिश की है और निजी कॉलेज इस जुर्माने को भी खत्म कराने की फिराक में दिखाई दे रहे है.
इसके साथ 721 सीटों के गणित को समझाते हुए व्यापम के व्हिसलब्लोवर डॉ. आनंद राय ने कहा है, दरअसल इन सीटों पर काउंसिलिंग के जरिए वे छात्र सेलेक्ट कराए जाते हैं जो किसी और छात्र के सॉल्वर के तौर पर परीक्षा में बैठते हैं. ये परीक्षा में बैठकर दूसरे छात्र को नकल कराकर पास कराते हैं और खुद भी पास हो जाते हैं लेकिन चूंकि इन छात्रों को पढ़ाई नहीं करनी है इसलिए ये लोग कॉलेज मैनेजमेंट के इशारे पर दाखिले की अंतिम तारीख यानी 30 सितंबर को ही सीट खाली करते हैं और बाद में कॉलेज प्रबंधन इन सीटों को 35 से 50 लाख रु. तक में बेच देता है.