रेल्वे में रिजर्वेशन कराने वालों के लिए बड़ी खुशखबरी, टिकटों को लेकर दिक्कत होगी कम

रेल्वे में रिजर्वेशन कराने वालों के लिए बड़ी खुशखबरी, टिकटों को लेकर दिक्कत होगी कम
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इस फेस्टिव सीजन रिजर्वेशन कराने वालों के लिए भारतीय रेल खुशी की खबर लेकर आई है. दुर्गा पूजा, दीवाली, छठ जैसे त्योहारों के लिए पहले से ही एडवांस में टिकट बुक हो चुके हैं. खास तौर पर यूपी, बिहार और बंगाल जाने वाली ट्रेनों में निर्धारित सीटों से ज्यादा टिकट बिक चुकें हैं. हाल ही में रेलवे ने घोषणा की कि डेली बेसिस पर 4 लाख अतिरिक्त सीटें कई ट्रेनों में उपलब्ध कराई जाएगी. इसके लिए भारतीय रेल ने ट्रेनों में सीटों को बढ़ाने के लिए नई HOG तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा. इस  तकनीक की वजह से लंबी दूरी की ट्रेनों में अतिरिक्त सीटें उपलब्ध हो जाएंगी और यात्रियों को टिकट के लिए मारा-मारी नहीं करनी पड़ेगी. आइए जानते है पूरी जानकारी विस्तार से

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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि इस तकनीक का नाम HOG है 'हेड ऑन जेनरेशन' तकनीक. यह तकनीक ट्रेन के पावर कार यानी की इंजन के बगल में अटैच होने वाले पावर या जेनरेटर कार में 25W के ओवरहेड इलेक्ट्रिक वायर से ली गई इलेट्रिसिटी का इस्तेमाल ट्रेन के अंदर पावर स्पलाई के लिए करता है. आमूमन लंबी दूरी की ट्रेन में कुल 23 कोच होते हैं जिसमें एक पावर कार (EOG) आगे की तरफ और एक पावर कार पीछे की तरफ लगती है. इसके अलावा ट्रेन में 9 स्लीपर कोच, एक पैंट्री कार और 7 एसी कोच लगे होते हैं. हेड ऑन जेनरेशन तकनीक ट्रेन के इंजन से पावर लेकर EOG में बने इलेक्ट्रिक हब को बिजली पहुंचाता है, जिसे ट्रेन के कोचों में पहुंचाया जाता है. इस समय भारतीय रेलवे राजधानी, शताब्दी समेत कई ट्रेनों में इस तकनीक का इस्तेमाल कर रही है.

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कैसे बढ़ेंगी अतिरिक्त सीटें?

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार HOG तकनीक का इस्तेमाल लंबी दूरी की ट्रेनों में लगने वाले अतिरिक्त पावर या जेनरेटर कार EOG (एंड ऑन जेनरेशन) की जगह पर एक स्लीपर कार को अटैच किया जाएगा. एक LHB (लिंक हॉफमैन बुश) स्लीपर कोच में 78 सीटें होती हैं, ऐसे में लंबी दूरी की एक ट्रेन में रोजाना 78 सीटें बढ़ जाएगी.लंबी दूरी की ट्रेनों में लगने वाले दो EOG की जगह पर केवल एक ही EOG या पावर कार का इस्तेमाल किया जाएगा. यह पावर कार ट्रेन में इमरजेंसी की स्तिथि में बिजली पहुंचाने का काम करता है. HOG तकनीक के इस्तेमाल से न सिर्फ भारतीय रेलवे को जेनरेटर के लिए इस्तेमाल होने वाले फ्यूल की बचत होगी. साथ ही साथ पर्यावरण को भी इन जेनरेटर कार से निकलने वाले धुएं से निजात मिलेगी और प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सकेगा.

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