जयपुर: विजयादशमी पर देशभर में रावण दहन की प्रथा है, किन्तु राजस्थान में एक स्थान ऐसा है जहां व्यक्ति इसके अंत पर शोक मनाते हैं। जोधपुर में रावण का मंदिर बनाया गया है तथा वहां पूजा अर्चना की जाती है। यहां के श्रीमाली ब्राह्मण समाज स्वयं को रावण का वंशज मानता है तथा मंडोर को उनका ससुराल। गोधा गोत्र के ब्राह्मणों ने जोधपुर के मेहरानगढ़ की तलहटी में रावण का मंदिर 2008 में बनवाया था। यहां रावण की महादेव पूजा करते हुए भव्य मूर्ति स्थापित की गई है।
वही मंदिर के पंडित बताते हैं कि विजयादशमी पर रावण दहन के पश्चात् उनके समाज के लोग स्नान कर यज्ञोपवीत बदलते हैं मंदिर में खास पूजा-अर्चना करते हैं। रावण भी महादेव भक्त था, इसलिए महादेव की भी खास पूजा होती है। रावण के मंदिर के सामने ही मंदोदरी का मंदिर भी बनवाया गया है। प्रथा है कि जब रावण विवाह करने जोधपुर के मंडोर आए थे तब यह ब्राह्मण उनके साथ बारात में आए थे। शादी करके रावण वापस लंका चला गया, किन्तु यह लोग यहीं रह गए। तब गोधा गोत्र के श्रीमाली ब्राह्मण यहां रावण की खास आराधना करते आ रहे हैं।
वही ये रावण का दहन नहीं देखते, बल्कि उस दिन शोक मनाते हैं। यहां तक कि श्राद्ध पक्ष में दशमी पर रावण का श्राद्ध, तर्पण आदि भी करते हैं। अपनों के देहांत के पश्चात् जिस प्रकार स्नान कर यज्ञोपवीत बदला जाता है, उसी तरह रावण के वंशज दहन के पश्चात् शोक के तौर पर लोकाचार स्नान कर कपड़े बदलते हैं। जोधपुर में श्रीमाली ब्राह्मण में गोधा गोत्र के ब्राह्मण रावण के ही वंशज हैं, इसलिए वे रावण दहन नहीं देखते। जोधपुर में इस गौत्र के लगभग 100 से अधिक और फलोदी में 60 से ज्यादा परिवार रहते हैं।
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