अब करौली से भी 'पलायन' के लिए मजबूर हुए हिन्दू, अपनी जली हुई दुकानों के सामने लगाए पोस्टर

अब करौली से भी 'पलायन' के लिए मजबूर हुए हिन्दू, अपनी जली हुई दुकानों के सामने लगाए पोस्टर
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जयपुर: राजस्थान में करौली में भीषण हिंसा होने के बाद स्थानीय हिंदू पलायन करने के लिए मजबूर हो गए हैं। वे इतने डरे हुए हैं कि दूसरी जगहों पर अपना ठिकाना तलाश रहे हैं। करौली के हिन्दू अपनी जली हुई दुकानों के बाहर हाथों में ‘यह प्रॉपर्टी बिकाऊ है’ के पोस्टर लेकर खड़े हैं। रिपब्लिक भारत के मुताबिक, स्थानीय हिंदू परिवारों में डर का माहौल है। प्रॉपर्टी बेचने के ​अलावा उनके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा है। ऐसे ही एक हिंदू दुकानदार ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि, 'हमारे पास पलायन करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है। हमारा काफी नुकसान हुआ है। हमें मार्केट का पैसा भी देना है। मजबूरी में अपनी संपत्ति बेचनी पड़ रही है। इस दशहत के माहौल में हम नहीं जी सकते हैं। इसलिए हमने पलायन करने का फैसला लिया है, क्योंकि ये लोग आगे भी हमारे साथ बहुत कुछ कर सकते हैं।'

 

एक बुजुर्ग ने बताया कि यहाँ कभी भी हिंसा हो सकती है। हमें यहाँ पर नहीं रहना है। एक और हिंदू दुकानदार जो बेहद डरा हुआ था उसने कहा, मैं भी यहाँ नहीं रहूँगा। मेरे अंदर इन लोगों का खौफ बैठ चुका है। ये हमें कभी भी मार सकते हैं। हमारी जान को खतरा है।' हेमंत अग्रवाल नामक एक दुकानदार ने मीडिया से बात करते हुए बताया है कि, 'हमारी दुकानों को करौली में जला दिया गया। सारा सामान लूट लिया गया। इससे हमें काफी नुकसान हुआ है। अब हम यहाँ नहीं रहेंगे, चले जाएँगे। वे लोग हमें यहाँ नहीं रहने देंगे।'

चंद्रशेखर गर्ग नामक एक अन्य दुकानदार ने बताया कि, 'उस दिन (2 अप्रैल) लगभग 3 से 4 बजे के बीच मुस्लिम दुकानदारों ने अपनी दुकानें बंद करना शुरू कर दी थी। साढ़े 6 बजे के लगभग जब बाजार में भीड़ इकठ्ठा होने लगी तो हमने अपनी दुकाना खोलना शुरू कर दिया। लेकिन इस दौरान उन लोगों (मुस्लिम) ने इसका विरोध किया। जब हमने उनका विरोध किया तो उन्होंने हमें वहाँ से भगा दिया गया। हमें जान से मार डालने की धमकी भी दी गई। हमारे घर जाने के बाद उन लोगों ने हमारी दुकानों को लूटा, फिर उसे आग के हवाले कर दिया। हमें बहुत आर्थिक नुकसान हुआ है। हम यहाँ से पलायन करेंगे और कोई दूसरा काम खोजेंगे। हमारी 60 वर्ष पुरानी दुकान है, किन्तु हमें इसे छोड़ने के लिए विवश किया जा रहा है। हमने हमेशा भाईचारा बनाए रखा, किन्तु हमें क्या पता था कि यही लोग हमारे साथ धोखा करेंगे और हमारी पैतृक दुकानों को आग लगा देंगे।'

क्या है पूरा मामला ?

बता दें कि करौली में हिंदू नव वर्ष के अवसर पर निकाले गए जुलूस पर 2 अप्रैल को पत्थरबाज़ी हुई थी, जिसके बाद हिंसा भड़क गई थी। दुकानों में आगजनी की गई। इसमें पुष्पेंद्र नामक एक युवक गंभीर रूप से जख्मी हो गया था। उस पर चाकू से हमले किए गए थे। उपद्रवियों को काबू करते हुए पुलिस के 4 जवान भी जख्मी हुए थे। कुल 43 लोगों के घायल होने की खबर मीडिया में आई थी। इसके बाद मामले में तफ्तीश शुरू हुई और पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (PFI) का एक पत्र सामने आया, जिसने इस हिंसा के सुनियोजित होने की तरफ संकेत किया। बाद में कांग्रेस पार्षद मतबूल अहमद की भूमिका भी हिंसा में पाई गई, जो फिलहाल फरार है। राजस्थान के गवर्नर कलराज मिश्र ने भी इस हिंसा को सुनियोजित करार दिया था। उन्होंने कहा था कि करौली हिंसा के दौरान जिस प्रकार पथराव किया गया, उससे साबित होता है कि इसे सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया और इसे रोका जा सकता था। यह सवाल भी उठ रहा है कि, आखिर रैली वाले दिन लोगों की छतों पर इतने ईंट-पत्थर आए कहाँ से, क्या ये पहले से हमले के लिए जमा करके रखे गए थे ? क्या मुस्लिम दुकानदारों ने इसलिए दुकानें बंद की थी, ताकि वे हिंसा और लूट मचाने के लिए निकल सकें ? सवाल कई हैं और सवालों के दायरे में है पूरे मामले में मूकदर्शक बनी राजस्थान की कांग्रेस सरकार, जिसने अभी तक पीड़ितों को आश्वासन तक नहीं दिया है, वरना उन्हें पलायन के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता। 

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