'राकेश टिकैत हमारे नेता नहीं..', दिल्ली में एक सुर में बोले 50 हज़ार किसान, सरकार से की 3 मांग

'राकेश टिकैत हमारे नेता नहीं..', दिल्ली में एक सुर में बोले 50 हज़ार किसान, सरकार से की 3 मांग
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नई दिल्ली: देश की राजधानी दिल्ली के रामलीला मैदान में सोमवार (19 दिसंबर) को करीब 50,000 किसान जुटे थे। ‘भारतीय किसान संघ’ (BKS) के बैनर तले इन किसानों ने केंद्र सरकार के सामने अपनी कई माँगें रखी और फिर शाम होते-होते वापस अपने खेतों-खलिहानों में लौट गए। इस रैली में देश के कई हिस्सों के किसान इकठ्ठा हुए थे। किसानों के मंच पर भारत माता और भगवान बलराम की तस्वीरें लगी हुईं थी। लेकिन, पिछले किसान आंदोलन से विपरीत किसानों का यह जुटान एकदम शांतिपूर्ण रहा, यहाँ सुरक्षा व्यवस्था के लिए दिल्ली पुलिस के अलावा पैरा-मिलिट्री बलों की भी तैनाती की गई थी।

 

जब दिल्ली आए किसानों से पूछा गया कि, आखिर क्या कारण है कि दिल्ली की सरहदों को एक साल तक घेर कर रखने वाले किसानों के पहले वाले आंदोलन में जम कर हिंसा हुई थी, जबकि ये आंदोलन शांतिपूर्ण है? मध्य प्रदेश के सीहोर से आए सूरज सिंह ठाकुर ने इसका जवाब देते हुए बताया कि हमारे आंदोलन को किसी सियासी दल की फंडिंग नहीं है, शायद इसीलिए ये शांतिपूर्ण है। सूरज सिंह ठाकुर ने दावा किया कि तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में उत्पात मचाने वाे तथाकथित किसानों को राजनीतिक फंडिंग मिली थी। किसानों ने कहा कि हम केवल अपना अधिकार माँगने आए हैं, जबकि वो लोग किसानों को बदनाम करने के लिए दिल्ली आए थे। इन किसानों ने ये भी बताया कि वो पहले वाले ‘किसान आंदोलन’ में शामिल नहीं थे। वहीं कुछ का कहना है कि महज शुरुआत में ही वो उस आंदोलन के साथ थे, लेकिन बाद में आंदोलन के सियासी होने का पता लगते ही वे अलग हो गए।  इसके साथ ही इन किसानों ने एक स्वर में कहा कि राकेश टिकैत उनके नेता नहीं हैं और देश के प्रत्येक किसान को वे अपना नेता मानते हैं और आपस में विचार-विमर्श करके ही फैसले लेते हैं।  

 

‘किसान गर्जना रैली’ में इकठ्ठा हुए किसानों का स्पष्ट कहना था कि वे लोग किसी को भी परेशान नहीं करना चाहते, वे बस अपना काम करवाना चाहते हैं। उनकी केंद्र सरकार से मुख्य तीन माँगें हैं, जिसे लेकर वे दिल्ली आए हैं। किसानों ने बताया है कि प्रति वर्ष मिलने वाली ‘किसान सम्मान निधि’ को 6000 रुपए से बढ़ाते हुए 20,000 रुपए किया जाए। वहीं, कृषि यंत्रों पर लगने वाली GST को भी समाप्त किया जाना उनकी माँग है। इसके अलावा इन किसानों की सबसे बड़ी माँग ये है कि लागत के आधार पर फसल को बेचने का मूल्य निर्धारित किया जाए। 

किसानों ने तंज कसते हुए कहा कि जिन नेताओं को ये तक पता नहीं है कि आलू जमीन के अंदर उगता है या बाहर, वो हमारी फसलों का  मूल्य निर्धारित करने के लिए बैठे हुए हैं। प्राइवेट कंपनियों से उन्हें कोई दिक्कत है? इसके जवाब में किसानों ने कहा कि वो कृषि कानूनों के समर्थन में हैं, केवल कुछ त्रुटियों को सुधार दिया जाए। इन किसानों का कहना है कि वो राष्ट्रवादी हैं और तीनों कृषि कानूनों (अब निरस्त) से उन्हें कोई समस्या नहीं है।

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