इन दिनों राम मंदिर का जिन्न एक बार फिर बाहर आ गया है। जैसे—जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं वैसे—वैसे राम मंदिर मुद्दा फिर उछलने लगा है। संतों और विश्व हिंदू परिषद की आज की बैठक में राम मंदिर को लेकर एक बार फिर कड़ा संदेश दिया गया है। विश्व हिंदू परिषद ने तो साफ कर दिया कि अगर राम मंदिर नहीं बना, तो अब याचना नहीं बल्कि रण होगा। यानी की एक बार फिर मंदिर निर्माण को लेकर युद्ध की स्थिति बन रही है।
वीएचपी की इस घोषणा के बाद राजनीति में अलग—थलग पड़ी शिवसेना ने इसे एक मौके के तौर पर लिया और घोषणा कर दी कि वह दीपावली के बाद अयोध्या में राम मंदिर निर्माण करेगी। शिवसेना ने तो यहां तक कह दिया कि वह हर हाल में राम मंदिर बना कर रहेगी। शिवसेना ही नहीं कई दूसरी पार्टियां भी राम मंदिर निर्माण को लेकर इन दिनों कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो गई हैं। अभी कुछ दिन पहले ही बीजेपी ने भी राम मंदिर निर्माण को लेकर सकारात्मक रुख दिखाया था, तो कांग्रेस इस मसले पर अभी भी कुछ कहने से बच रही है। दरअसल, मंदिर निर्माण बीजेपी के चुनाव का सबसे बड़ा एजेंडा है और जब चुनाव के नजदीक आते हुए संत समिति और वीएचपी ने मंदिर को लेकर सरकार को अल्टीमेटम दे दिया है, तो उम्मीद है कि सरकार इस पर सकारात्मक रवैया अपनाएगी।
अगर पूरे मसले को गौर से देखा जाए, तो यह सब 2019 के चुनावों की आधारशिला दिखाई देता है। दरअसल, बीजेपी की छवि एक हिंदुत्ववादी पार्टी की है और वीएचपी एवं संत समिति का उसे अल्टीमेटम देना एक तरह से चुनावों की रणनीति के तहत ही नजर आता है। वहीं शिवसेना जैसी पार्टियां मंदिर निर्माण में अपनी भूमिका दिखाकर हिंदू वोटों को लुभाने की कोशिश कर रही हैं। वहीं कांग्रेस जो अब तक मंदिर को लेकर हमेशा बीजेपी के खिलाफ रहती थी, इस बार वह इस मुद्दे पर पूरी तरह शांत है। साथ ही उसके अध्यक्ष राहुल गांधी मंदिर—मंदिर घूम रहे हैं, ताकि पार्टी की छवि हिंदू विरोधी न होकर उनकी हितैषी बने।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि 2019 में जहां किसी भी पार्टी के पास चुनाव को लेकर कोई मुद्दा नहीं है। ऐसे में राम मंदिर उन्हें अपना एक चुनावी हथियार नजर आता है, जिसके सहारे वह 2019 का किला फतह करने की कवायद में जुटी हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राम मंदिर का यह जिन्न इस बार अपने असल रूप में आ पाता है या चुनाव खत्म होते ही फिर से बोतल में बंद कर दिया जाता है?
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