रमज़ान का आज 10 वां रोजा है. बता दें, रमजान माह के तीस रोजे तीन अक्षरों (कालखंड) पर मुश्तमिल (आधारित) हैं. शुरुआती दस दिनों यानी रोजों का अशरा 'रहमत' का (कृपा का) बीच के दस रोजों का अशरा 'मग़फ़िरत' (मोक्ष) का और आख़िरी दस रोजों का अशरा दोज़ख़ (नर्क) से 'निजात' (छुटकारे) का है. यानि इसका पहला चरण खत्म हो जायेगा आज. इसके बाद ये दूसरे चार्म में चला जायेगा. बता दें, रहमत का अशरा अल्लाह की सना (स्तुति) करते हुए रोजेदार के लिए उसकी (अल्लाह की) मेहरबानी मांगने का है.
क़ुरआने-पाक की सूरह अन्नास्र की तीसरी आयत में ज़िक्र आया है ...'तो अपने रब की सना (स्तुति) करते हुए उसकी पाकी (पवित्रता) बयान करो और उससे बख़्शिश चाहो.' वहीं शुरुआती दस रोजे यानी पहला अशरा, अल्लाह से रहमत हासिल करने का दौर है. इसी में दसवे रोजे का मतलब है अल्लाह की रहमत की रवानी और मेहरबानी के मील के पत्थर की मानिन्द है.
इसी के बारे में हदीस (पैगंबर की अमली ज़िंदगी के दृष्टांत) की रोशनी में देखें तो तिर्मिज़ी-शरीफ़ (हदीस)में मोहम्मद सल्ल. ने फर्माया, - लोगों! तुम अल्लाह से फजल तलब किया करो. अल्लाह तआला सवाल करने वालों को बहुत पसंद करता है.' यह बात शुरुआती अशरे में अल्लाह से रहमत के लिए जब रोजेदार दुआ करता है तो दुआ कबूल होती है और रहमत बरसती है. क्योंकि हज़रत मोहम्मद सल्ल. की यह भी हदीस है कि 'दुआ दरअसल इबादत का मग़ज़ है.' कुल मिलाकर यह कि 'रोजा' रहमत का शामियाना और बरकत का आशियाना है.
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