रमजान में पाक महीने में बता दें, कुरआने-पाक की सूरह 'हूद' की तेईसवीं आयत (आयत नंबर-23) में जाहिर कर दिया गया है- 'जो लोग ईमान लाए और नेक अमल किए और अपने परवरदिगार के आगे आजिजी (याचना) की, यही साहिबे-जन्नत (स्वर्ग के अधिकारी यानी पात्र ) हैं. हमेशा इसमें (जन्नत में) रहेंगे.' सभी जानते हैं रमजान का माह हर किसी के लिए कितना खास होता है. इसमें मुस्लिम धर्म के लोग पूरे महीने रोजा रखते हैं.
मजकूर (उपर्युक्त) आयत की रोशनी में अठारहवां रोजा बेहतरीन तरीक़े से समझा जा सकता है. 'नेक अमल' से मुराद (आशय) है ऐसे काम जो पाकीजगी (पवित्रता), परहेजगारी (सात्विकता), इंसानियत और शरई उसूल (धर्म-विधान) के मुताबिक सब्र (धैर्य) और सदाक़त (सच्चाई) की मिसाल हों. नेक अमल यानी सत्कर्म/सदाचार. 'परवरदिगार' से मुराद अल्लाह (ईश्वर) से है. यहां बता दें, 'आजिजी' का मतलब याचना/विनम्र निवेदन है. यानी जब रोजा रखने वाला शख़्स या रोजादार अल्लाह पर ईमान रखकर नेक करता है.
जैसे सच बोलना, ईमानदारी की कमाई से ही रोटी खाना, जरूरतमंदों की मदद करना, यतीम (अनाथ) बच्चों की परवरिश करना, विधवाओं, अंपगों, अपाहिजों, नाबीना यानी दृष्टिहीनों की मदद करना, भूले-भटके को सही रास्ता दिखाना, अमानत में खयानत नहीं करना, ग़ैरकानूनी तरीके से दौलत नहीं कमाना, शराब नहीं पीना, जुआ-सट्टा नहीं खेलना. जिना यानी व्यभिचार नहीं करना, बीमारों की मिजाजपुर्सी करना, मां-बाप, बुजुर्गों की ताजीम या सम्मान करना. अल्लाह को दिल से याद करना और ग़ुरुर यानी घमंड नहीं करना है तो मगफिरत के अशरे में अठारहवें रोजे तक आते-आते तो खुद रोजादार का रोजा उसके लिए जन्नत (स्वर्ग) का फरियादी हो जाता है.
पहले रोजे से शुरू हुआ नेक अमल का सिलसिला अठारहवें रोजे तक परहेजगारी का क़ाफिला बन जाता है. यानी अठारहवां रोजा मगफिरत का पयाम और नेकी का निजाम है.