रोजा हर किसी के जीवन में महत्व रखता है. इस्लामिक धर्म में ये माह बेहद ही पाक माना जाता है. बता दें, आज रोजे के दूसरा दिन है जिसका और भी खास महत्व होता है. बता दें, रोजा ईमान की कसावट है. रोजा सदाक़त (सच्चाई) की तरावट और दुनियावी ख़्वाहिशों पर रुकावट है. रोजा रखने पर दिल दुनिया की ख़्वाहिश करता है तो रोजा इस पर रुकावट पैदा करता है. इसके अलावा पवित्र रमजान में अल्लाह का फ़रमान है 'या अय्युहल्लज़ीना आमनु कुतेबा अलयकुमुस्स्याम' यानी 'ऐ किताब (क़ुरआन पाक) के मानने वालों रोजा तुम पर फ़र्ज़ है.' इसके मा'नी (मतलब) यह भी है कि किताब और रोज़े को समझो.
रोजे को समझना सबसे बड़ी बात है. रोजे को समझना यानी रोजे से जुड़े एहतियात बरतना और ग़ुस्से/लालच/हवस पर क़ाबू रखना ही सच्चा रोजा है. यानी क़ुरआन को समझ कर और सही पढ़ो (इसका मतलब यह है कि पवित्र क़ुरआन ख़ुदा का यानी अल्लाह का कलाम है और उसको अदब और खुशूअ (समर्पण की भावना) के साथ पढ़ो.
सुबह सेहरी करके रोजा तो रख लिया मगर ज़बान से झूठ बोलते रहे, दिमाग़ से गलत सोचते रहे, हाथों से ग़लत काम करते रहे, पांवों से ग़लत जगह जाते रहे, आंखों से बुरा देखते रहे, जिस्म से गलत हरकतें करते रहे, ज़हन ख़ुराफ़ात में लगाते रहे तो ऐसा रोजा, रोजा न रहकर फ़ाक़ा (सिर्फ भूखा-प्यासा रहना) हो जाएगा. रोजा ख़्वाहिशों पर क़ाबू (इंद्रिय निग्रह) का नाम है. रोजा सब्र और संयम का प़ैगाम है. दूसरा रोजा शफ़ाअत और इनाम है.
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