वैसे तो आमतौर पर लोगों को जब भी सफलता मिलती है तो वे इसका शोर मचाते हैं और सभी को यह बताते हैं कि वे सफल हो गए हैं. वहीं कहा जाता है सफलता मिलने पर कुछ देर शांत हो जाना चाहिए. जी हाँ, सुंदरकांड में हनुमानजी ने हमें बताया है कि सफल होने पर कुछ देर के लिए शांत हो जाना चाहिए और किसी के सामने कुछ नहीं कहना चाहिए. वहीं अगर हमारी सफलता की कहानी कोई दूसरा बयान करेगा तो कामयाबी और बढ़ी हो जाती है और उसका दुगनी ख़ुशी मिलती है.
जामवंत ने सुनाई हनुमानजी की सफलता की गाथा - सुंदरकांड में हनुमानजी ने माता सीता को श्रीराम का संदेश दिया, लंका दहन किया. ये दोनों काम करने के बाद हनुमानजी श्रीराम के पास लौट आए, ये उनकी सफलता की चरम सीमा थी. वे चाहते तो अपने इस काम को खुद ही श्रीरामजी के सामने बयान कर सकते थे, लेकिन हनुमानजी जो करके आए, उसकी गाथा श्रीराम को जामवंत ने सुनाई.
तुलसीदासजी ने लिखा है कि- नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी. सहसहुं मुख न जाइ सो बरनी.. पवनतनय के चरित्र सुहाए. जामवंत रघुपतिहि सुनाए..
जामवंत श्रीराम से कहते हैं कि- ''हे नाथ, पवनपुत्र हनुमान ने जो करनी की है यानी जो काम किया है, उसका हजार मुखों से भी वर्णन नहीं किया जा सकता. तब जामवंत ने हनुमानजी के सुंदर चरित्र (कार्य) श्रीरघुनाथजी को सुनाए..''
सुनत कृपानिधि मन अति भाए. पुनि हनुमान हरषि हियं लाए.. सफलता की गाथा सुनने पर श्रीरामचंद्र के मन को हनुमानजी बहुत ही अच्छे लगे. उन्होंने हर्षित होकर हनुमानजी को फिर हृदय से लगा लिया. परमात्मा के हृदय में स्थान मिल जाना अपने प्रयासों का सबसे बड़ा पुरस्कार है.
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