रामनवमी के दिन रामचरितमानस की इन चौपाइयों को पढ़ने से हो जाएगा आपका उद्धार

रामनवमी के दिन रामचरितमानस की इन चौपाइयों को पढ़ने से हो जाएगा आपका उद्धार
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आप सभी को ptaa ही होगा आज राम नवमी है और आज के दिन कई लोगों ने राम भगवान के लिए उपवास रखे होंगे. ऐसे में आज के दिन रामायण पढ़ने का बहुत बड़ा महत्व माना जाता है. आज के दिन रामायण चौपाई को यदि मनुष्य पढ़ ले और उसका अर्थ समझ ले तो उसका जीवन सफल है. आज हम लेकर आए हैं कुछ चौपाइयों को जिनका विधिपूर्वक जाप करने पर जीवन की विभिन्न प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती है.


मनोकामना पूर्ति एवं सर्वबाधा निवारण हेतु-

'कवन सो काज कठिन जग माही।

जो नहीं होइ तात तुम पाहीं।।'

भावार्थ : हे तात! जगत में कौन सा ऐसा कठिन काम है जो तुमसे न हो सकता. श्री राम जी के कार्य के लिए ही तो तुम्हारा अवतार हुआ है.यह सुनते ही हनुमान जी पर्वत के आकार समान अत्यंत विशालकाय रुप में आ गए.

भय से रक्षा के लिए मंत्र पढ़ें-

'मामभिरक्षय रघुकुल नायक।

धृतवर चाप रुचिर कर सायक।।'

भावार्थ : हे रघुकुल स्वामी! सुंदर हाथों में श्रेष्ठ धनुष और सुंदर बाण धारण किए हुए प्रभु आप मेरी रक्षा कीजिए. आप महामोहरूपी मेघसमूह के (उड़ाने के) लिए प्रचंड पवन हैं, संशयरूपी वन के (भस्म करने के) लिए अग्नि हैं और देवताओं को आनंद देने वाले नाथ हैं.

संशय मिटाने के लिए-

'रामकथा सुन्दर कर तारी।

संशय बिहग उड़व निहारी।।'

भावार्थ : जहां रामकथा का पाठ हो वहां यमराज के दूत भी नहीं जा सकते. रामकथा से जीवन जीने की कला आती है.

भगवान राम की शरण प्राप्ति हेतु-

'सुनि प्रभु वचन हरष हनुमाना।

सरनागत बच्छल भगवाना।।'

भावार्थ : प्रभु के वचन सुनकर हनुमान जी हर्षित हुए (और मन ही मन कहने लगे कि) भगवान कैसे शरणागत वत्सल हैं.

विपत्ति नाश के लिए-

'राजीव नयन धरें धनु सायक।

भगत बिपति भंजन सुखदायक।।'

भावार्थ : कमल के समान नेत्रों वाले मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम अपने प्रिय भक्तों की आधिदैविक , आधिदैहिक , आधिभौतिक विपत्तियों का भंजन अर्थात नाश करके उन्हें सुखप्रदान करने के लिए ही सदैव हाथ मे धनुष सायक अर्थात बाण धारण किए रहते हैं.ये भाव स्वान्तः सुखाय है.

रोग तथा उपद्रवों की शांति हेतु-

'दैहिक दैविक भौतिक तापा।

राम राज नहिं काहुहिं ब्यापा।।'

भावार्थ : 'रामराज्य' में दैहिक, दैविक और भौतिक ताप किसी को नहीं व्यापते। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और वेदों में बताई हुई नीति (मर्यादा) में तत्पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते है.

आजीविका प्राप्ति या वृद्धि हेतु-

'बिस्व भरन पोषन कर जोई।

ताकर नाम भरत अस होई।।'

भावार्थ- जो संसार का भरण-पोषण करते हैं, उनका नाम 'भरत' होगा. जिनके स्मरण मात्र से शत्रु का नाश होता है, उनका वेदों में प्रसिद्ध 'शत्रुघ्न' नाम है.

विद्या प्राप्ति के लिए-

'गुरु गृह गए पढ़न रघुराई।

अल्पकाल विद्या सब आई।।'

भावार्थ : भगवान श्रीराम ने बाल्य अवस्था में अल्प समय में ही सारी विद्याएं ग्रहण कर लीं थीं .वशिष्ट व श्रीराम के बीच गुरु-शिष्य के अगूढ़ रिश्ते थे.युवा समाज को इससे सीख जरुर लेना चाहिए.

संपत्ति प्राप्ति के लिए-

'जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं।

सुख संपत्ति नानाविधि पावहिं।।'

भावार्थ : और जो मनुष्य सकामभाव से सुनते और जो गाते हैं, वे अनेकों प्रकार के सुख और संपत्ति पाते हैं

शत्रु नाश के लिए-

राम राज बैठें त्रैलोका।

हरषित भए गए सब सोका॥

बयरु न कर काहू सन कोई।

राम प्रताप बिषमता खोई॥

भावार्थ : श्री रामचंद्रजी के राज्य पर प्रतिष्ठित होने पर तीनों लोक हर्षित हो गए, उनके सारे शोक जाते रहे. कोई किसी से वैर नहीं करता. श्री रामचंद्रजी के प्रताप से सबकी विषमता ( भेदभाव) मिट गई.

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