मुम्बई : टाटा समूह के चेयरमेन पद से साइरस मिस्त्री के इस्तीफे को लेकर दोनों ओर से दावे- प्रतिदावे किये जा रहे हैं. ऐसे में कौन सच्चा और कौन झूठा है यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा है.बहरहाल इस मुद्दे पर अंतहीन बहस जारी है.
एक ओर टाटा संस के अंतरिम चेयरमैन रतन टाटा ने कहा है कि साइरस मिस्त्री को चेयरमैन पद छोड़ने का मौका दिया गया था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. कंपनी के बोर्ड का मिस्त्री विश्वास खो चुके थे. इसलिए उन्हें हटा दिया गया. ईजीएम से पहले शेयरधारकों को साइरस द्वारा लिखे पत्र के बाद रतन टाटा ने यह बात कही. टाटा ने कहा कि टाटा संस का चेयरमैन होने के नाते मिस्त्री को ग्रुप कंपनियों में डायरेक्टर बनाया गया था. इसलिए साइरस का इन कंपनियों से भी इस्तीफा देना ही ठीक रहता, क्योंकि बोर्ड में मिस्त्री का बने रहना कंपनी के लिए नुकसानदायक हो सकता है.
जबकि दूसरी ओर जवाब में मिस्त्री के कार्यालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि रतन टाटा सच नहीं बोल रहे हैं. मिस्त्री को इस्तीफा देने का कोई मौका नहीं दिया गया था. बयान में कहा गया है कि 24 अक्टूबर की बोर्ड मीटिंग से पांच मिनट पहले नितिन नोहरिया और टाटा, मिस्त्री के कमरे में आए और कहा कि सुबह सभी ट्रस्टी ने उन्हें हटाने का फैसला किया. अब मिस्त्री या तो इस्तीफा देते या पांच मिनट बाद बोर्ड मीटिंग में उन्हें बर्खास्त किया जाता.रतन टाटा की गलतबयानी इस बात से भी साबित होती है कि इस घटना से चंद रोज पहले मिस्त्री और उनकी टीम के काम को सराहा गया था.