मुंबई: पात्रा चॉल मामले में गिरफ्तार शिवसेना नेता संजय राउत और प्रवर्तन निदेशालय (ED) के बीच आरोप-प्रत्यारोप का पुराना इतिहास रहा है। जी हाँ, अक्सर संजय राउत को प्रवर्तन निदेशालय पर आरोप लगाते हुए देखा जा चुका है। आपको याद हो तो इसी साल की शुरुआत में संजय राउत ने आरोप लगाया था कि ED के कुछ अधिकारी मुंबई में 'रंगदारी रैकेट' रैकेट चला रहे हैं। जी हाँ और उन्होंने कहा था इसमें बीजेपी नेताओं और कुछ अन्य लोगों की ओर से मदद दी जा रही है। हालाँकि इन आरोपों के आधार पर मुंबई पुलिस ने SIT का गठन किया था और बाद में महाराष्ट्र एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) ने FIR दर्ज की।
यह सब होने के बाद किसी भी तरह का सबूत नहीं मिला और SIT को रद्द कर दिया गया था। आपको बता दें कि इसी साल 8 मार्च को एक प्रेस कॉन्फ्रेस के दौरान राउत ने अरविंद भोसले की ओर से मुंबई पुलिस में दर्ज शिकायत का हवाला दिया था। जी दरअसल भोसले एक शिवसेना कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने ईडी के कुछ अधिकारियों और जीतू नवलानी सहित अन्य लोगों के खिलाफ आरोप लगाए थे। वहीं भोसले की शिकायत तत्कालीन मुंबई पुलिस आयुक्त संजय पांडे को सौंपी गई, जिन्होंने एसआईटी से इसकी जांच करने को कहा। भोसले ने आठ पेज के लेटर में उन सात कंपनियों का जिक्र किया, जिन पर उनका आरोप है कि नवलानी के नियंत्रण में थीं। इसके अलावा भोसले ने दावा किया कि नवलानी ईडी के प्रमुख 'एजेंट' थे। उन्होंने पत्र में बताया कि नवलानी ने ईडी के अधिकारियों को कुछ लोगों की वित्तीय गतिविधियों की जानकारी दी है।
हालाँकि बाद में उन लोगों को ईडी मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के तहत जांच करने के बहाने तलब करेगी। इन सभी को लेकर ईडी ने बंबई हाई कोर्ट की बेंच से संपर्क किया और नवलानी के खिलाफ FIR के आधार पर जांच पर रोक लगाने की मांग की। वहीं उसके बाद एजेंसी ने जांच सीबीआई को ट्रांसफर करने की भी अपील की थी। ईडी का तर्क था कि यह एफआईआर दुर्भावनापूर्ण है और खुले तौर पर इसकी जांच अधिकारियों का मनोबल गिराएगी। हाई कोर्ट ने तब इसकी जांच पर रोक लगा दी और इस पर महीने के अंत में सुनवाई होनी है।
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