'रवि किशन' का जीवन का सफर रहा अनोखा, पढ़कर मिलेगी प्रेरणा

'रवि किशन' का जीवन का सफर रहा अनोखा, पढ़कर मिलेगी प्रेरणा
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एक दिन में इतिहास नही रचा जाता बल्कि उसकी रूपरेखा बरसो पहले तैयार हो जाती है. इतिहास गवाह है हर सफलता की नींव काफी पहले रख दी जाती है. कुछ ऐसा ही है अभिनेता रवि किशन के साथ. 17 जुलाई को उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के केराकत तहलीस के छोटे से गांव वराई विसुई में पंडित श्याम नारायण शुक्ला व श्रीमती जड़ावती देवी के घर बरसो पहले आज ही के दिन यानि 17 जुलाई को एक किलकारी गूंजी जिनकी गूंज आज दुनिया के कोने कोने में हर क्षेत्र में सुनाई दे रही है. 17 जुलाई को जन्मे बालक रविन्द्र नाथ शुक्ला आज का रवि किशन है जिनकी उपलब्धि को कुछ शब्दों में या कुछ पन्नो में समेटा नही जा सकता.

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रवि किशन को अभिनय का शौक कब हुआ उन्हें खुद याद नही है पर रेडियो में गाने की आवाज इनके पैर को थिरकने पर मजबूर कर देती थी.कहीं भी शादी हो अगर बैंड की आवाज उनके कानों में गई तो वो खुद को कंट्रोल नही कर पाते थे.यही वजह है जब नवरात्र की शुरुआत हुई तो उन्होंने पहली बार अभिनय की ओर कदम रखा. गांव के रामलीला में उन्होंने माता सीता की भूमिका से अभिनय की शुरुआत हुई. उनके पिताजी पंडित श्यामनारायण शुक्ला को यह कतई पसंद नही था कि उनके बेटे को लोग नचनिया गवैया कहे , इसीलिए मार भी खानी पड़ी. पर बालक रविन्द्र के सपनो पर इसका कोई असर नही पड़ा. माँ ने रविन्द्र के सपनो को पूरा करने का फैसला किया और कुछ पैसे दिए और इस तरह अपने सपनो को साकार करने के लिए रविन्द्र नाथ शुक्ला मुम्बई पहुच गए.

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माँ मुम्बा देवी की नगरी काफी इम्तिहान लेती है. गांव का रविन्द्र नाथ शुक्ला यहां आकर रवि किशन तो बन गया पर मंज़िल आसान नही थी. संघर्ष के लिए पैसों की जरूरत थी इसिलिये उन्होंने सुबह सुबह पेपर बांटना शुरू कर दिया. आज जिस जिस अखबार में उनके बड़े बड़े फ़ोटो छपते हैं कभी उन्ही अखबारों को सुबह सुबह वह घर पहुचाया करते थे. यही नही पेपर बेचने के अलावा उन्होंने वीडियो कैसेट किराया पर देने का काम भी शुरू कर दिया. इन सबके बीच बांद्रा में उन्होंने पढ़ाई भी जारी रखी.

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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि एक अभिनेता की लोकप्रियता को राजनेताओं ने समय समय पर भुनाया है. ग्लैमर वर्ल्ड और राजनीति के बीच वैसे भी चोली दामन का साथ रहा है. रवि किशन की लोकप्रियता को भी चुनाव में कई राजनीतिक दलों ने भुनाया और देखते देखते रवि किशन राजनीतिक रंग में रंग गए. 2014 में जब दस साल की लगातार सत्ता के बाद कोंग्रेस की चारों ओर किरकिरी हो रही थी और देश में मोदी लहर चल रही थी तभी उन्होंने कोंग्रेस का साथ दिया और जौनपुर से लोकसभा चुनाव में उतरे लेकिन मोदी लहर ने उनका रास्ता रोक दिया. चुनाव के दो साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली से प्रभावित होकर उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया. बतौर स्टार प्रचारक उन्होंने दिल्ली नगर निगम चुनाव में बढ़चढ़कर हिस्सा किया और भाजपा की भारी जीत में एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित हुए. इस लोकसभा चुनाव में भी उनके चुनाव लड़ने की चर्चा ज़ोर शोर से उठी और कई सीटों से होते हुए आख़िरकार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की परम्परागत सीट गोरखपुर से उन्होंने चुनाव लड़ा और तीन लाख मतों से जीत हासिल की. एक अभिनेता का सांसद बनना कोई बड़ी बात नहीं है पर सांसद बनकर संसद में आवाज़ उठाना महत्वपूर्ण होता है. संसद के पहले ही सत्र में रवि किशन ने भोजपुरी को मान्यता की माँग को लेकर आवाज़ उठाई वो भी काफ़ी मज़बूती से उसकी जितनी तारीफ़ की जाए कम है. सत्ता पक्ष में ऐसे कम ही सांसद हैं जो प्रधानमंत्री मोदी की आँखों में आँखें डालकर बात कर सकते हैं , उनमें से एक हैं रवि किशन.

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