आरबीआइ गवर्नर शक्तिकांत दास ने सरकारी क्षेत्र के बैंक प्रमुखों को भारत में कर्ज के हालात में सुधार के लिए बुलाया था। परन्तु सोमवार को तकरीबन तीन घंटे तक मुंबई स्थित आरबीआइ मुख्यालय में चली बैठक का कोई नतीजा निकला हो, ऐसा नहीं लगता है। इसके साथ ही बैठक में दास ने बैंकों से कहा कि वे ब्रांच स्तर पर अपनी गतिविधियों को और तेज करें व ग्राहकों से मिल कर उन्हें कर्ज लेने के लिए प्रोत्साहित कर सकते है। इसके साथ ही अधिकांश बैंकों ने आरबीआइ से कहा कि वे कर्ज देने को तैयार हैं परन्तु बाजार में कर्ज लेने वालों की कमी है। इसके अलावा एक बैंक प्रमुख ने तो यहां तक अंदेशा जताया कि आने वाले महीनों में कर्ज की रफ्तार और घट सकती है। वहीं आरबीआइ ने बीते शुक्रवार को जनवरी, 2020 के कर्ज वितरण के आंकड़े जारी किए थे। वहीं उस महीने कर्ज वितरण में 8.5 फीसद की वृद्धि हुई थी हालाँकि जनवरी, 2019 में यह वृद्धि 13.5 फीसद की थी।
इसके साथ ही सबसे अधिक खराब स्थिति सर्विस सेक्टर की है जिसमें कर्ज की रफ्तार इस अवधि में 24 फीसद से घटकर नौ फीसद रह गई है। इसके साथ ही इन आंकड़ों के जारी होने से पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नई दिल्ली में आरबीआइ और बैंक प्रमुखों की अलग से बैठक की थी। इसके साथ ही सीतारमण ने बैंकों से कहा था कि उन्हें ब्रांच स्तर की बैंकिंग फिर से शुरू करने की जरूरत है ताकि ग्राहकों के साथ व्यक्तिगत संपर्क हो और वो कर्ज लेने के लिए आगे आएं। इसके साथ ही आरबीआइ गवर्नर ने एक तरह से यही संदेश को बैंक प्रमुखों को दिया। लेकिन बैंकों के रवैये से साफ है कि असल समस्या उनकी तरफ से नहीं है, बल्कि बाजार में कर्ज लेने वाले ही नहीं है।
इस बैठक में भाग लेने वाले एक अधिकारी ने कहा कि असली समस्या मांग की है। बाजार में मांग नहीं है और उद्योग जगत को ऐसा लग रहा है कि अभी मांग बढ़ने वाली नहीं है। वहीं ऐसे में उद्योग जगत नया कर्ज लेने के लिए आगे नहीं आ रहा है। इसके साथ ही अभी स्थिति यह है कि समूचे बैंकिंग सिस्टम में अतिरिक्त पूंजी पड़ी हुई है जिसका वह कर्ज देने के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं परन्तु मांग नहीं होने की वजह से ऐसा नहीं हो रहा है। इसके साथ ही एक बैंक प्रमुख ने बैठक में साफतौर पर कहा कि कर्ज वितरण की रफ्तार आने वाले दिनों में और कम हो सकती है।
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