'सरकार के पक्ष में आंकड़े जारी करो..', RBI पर दबाव डालते थे कांग्रेस के वित्त मंत्री, पूर्व गवर्नर ने अपनी किताब में खोले कई राज़

'सरकार के पक्ष में आंकड़े जारी करो..', RBI पर दबाव डालते थे कांग्रेस के वित्त मंत्री, पूर्व गवर्नर ने अपनी किताब में खोले कई राज़
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नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर रहे पी सुब्बाराव ने कांग्रेस (मनमोहन सिंह सरकार) सरकार के दौरान हुए कामों को लेकर हैरान करने वाले खुलासे किए हैं। उन्होंने कांग्रेस सरकारों के वक़्त दो वित्त मंत्री पी चिदंबरम और प्रणब मुखर्जी के साथ काम किया था। पी सुब्बाराव ने अपनी पुस्तक में दावा किया है कि UPA (कांग्रेस गठबंधन) सरकारों में वित्त मंत्री रहे प्रणब मुखर्जी और पी चिदंबरम रिजर्व बैंक पर दबाव डालते थे कि वो सरकार के पक्ष में माहौल बनाने वाले आँकड़ें पेश करे। इतना ही नहीं, वो (कांग्रेस नेता) अपने मनमुताबिक RBI की नीतियों में बदलाव करने का दबाव भी बनाते थे। हालाँकि, पूर्व RBI गवर्नर ने अपनी पुस्तक में ये भी लिखा है कि प्रणब मुखर्जी तो अपनी बात शालीन तरीके से रखते थे, मगर पी चिदंबरम अपनी बात मनवाने के लिए बहस करते थे।

दुव्वुरी सुब्बाराव ने अपनी पुस्तक में दावा किया है कि कांग्रेस सरकारों के दौरान प्रणब मुखर्जी और पी चिदंबरम की अगुवाई वाला वित्त मंत्रालय ब्याज दरों में नरमी लाने के लिए RBI पर दबाव बनाता था और आम जनता के सामने सरकार की छवि चमकाने के लिए वृद्धि की बेहतर तस्वीर पेश करने को कहता था। पूर्व RBI गवर्नर ने अपनी हालिया पुस्तक ‘जस्ट ए मर्सिनरी: नोट्स फ्रॉम माई लाइफ एंड करियर’ में यह भी लिखा है कि सरकार में RBI की स्वायत्तता के महत्व को लेकर ‘समझ और संवेदनशीलता’ कम है।

‘रिजर्व बैंक सरकार की चीयरलीडर?’ नाम के एक चैप्टर में सुब्बाराव ने जिक्र किया है कि सरकार का दबाव केवल RBI के ब्याज दर के रुख तक सीमित नहीं था। RBI पर इस बात के लिए भी दबाव डाला जाता था कि वह मूल्यांकन के विपरीत विकास और महंगाई के बेहतर अनुमान पेश करे, जिससे सरकार की अच्छी तस्वीर जनता के सामने जाए। सुब्बाराव ने कहा कि, ‘मुझे एक ऐसा वाकया याद है, जब प्रणब मुखर्जी वित्त मंत्री थे। वित्त सचिव अरविंद मायाराम और मुख्य वित्त सलाहकार कौशिक बसु ने अपने अनुमानों के साथ हमारे अनुमानों का विरोध किया था, जो मुझे लगा कि काफी अधिक था।

सुब्बाराव ने कहा कि, “मायाराम ने एक मीटिंग में यहाँ तक कह दिया कि विश्व में हर जगह, सरकारें और केंद्रीय बैंक आपस में सहयोग कर रहे हैं, यहाँ भारत में RBI बेहद बदमाश है।” सुब्बाराव ने कहा कि वे उनकी इस उम्मीद से हमेशा परेशान और खफा रहे कि RBI को सरकार के लिए चीयरलीडर जैसा काम करना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि वह इस बात को लेकर सख्त थे कि RBI अपने बेहतरीन पेशेवर फैसलों में केवल जनता के बीच सकरात्मक भावनाएँ बनाने के लिए न भटके।

उन्होंने यह भी बताया कि RBI के नीतिगत रुख को लेकर चिदंबरम और मुखर्जी दोनों के साथ उनकी तकरार हुई थी, क्योंकि दोनों हमेशा नरम दरों पर जोर देते थे, हालांकि दोनों का अपनी बात कहने का तरीका अलग था। सुब्बाराव ने लिखा कि, “चिदंबरम अमूमन वकील जैसे अपने मामले में बहस करते थे, वहीं मुखर्जी प्रतिष्ठित और सर्वोत्कृष्ट राजनेता थे। वे अपना राय प्रकट करने के बाद मामले में बहस करने का काम अपने अधिकारियों पर छोड़ देते थे। मुखर्जी ने वर्ष 2012 में वित्त मंत्री बनने के फिजूलखर्ची पर भी रोक लगाने का प्रयास किया था।  

बता दें कि डी सुब्बाराव 5 सितंबर, 2008 को पाँच वर्ष के लिए रिज़र्व बैंक के गवर्नर के रूप में कार्यभार संभालने से पहले वित्त सचिव (2007-08) थे। उनके RBI गवर्नर का पद संभालने के कुछ दिन बाद ही 16 सितंबर को अमेरिका का लेहमैन ब्रदर्स दिवालिया हो गया था और यह 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी का सबब बना था। यह इतिहास की सबसे बड़ी कॉरपोरेट नाकामी भी मानी जाती है।

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