काल सर्प दोष कुंडली में इन्हीं दोनों के कारण से निर्माण होता है। यानि जब कुंडली में राहु और केतु के बीच में सभी ग्रह आ जाते हैं तो इसे ही काल सर्प दोष कहा जाता है। अगर किसी जातक की कुंडली में राहु की दशा या महादशा चल रही होती है तो उसे कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जब किसी जातक की कुंडली में राहु की वक्री दृष्टी पड़ती है तो यह उसके समाने संकटों का अंबार लग जाता है। इसी प्रकार से केतु के बुरे प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में अचानक से संकट आने लगते हैं। पैरों में कमजोरी आ जाती है और उसकी निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है।ऐसी स्थिति में जातकों को इन दोनों ग्रहों से जुड़े उपाय करने चाहिए।
108 बार करें राहु-केतु के बीज मंत्र का जाप
राहु का बीज मंत्र - ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः
केतु का बीज मंत्र - ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः
राहु-केतु के लिए इन देवी-देवताओं की करें पूजा
राहु ग्रह की शांति के लिए माँ दुर्गा तथा भैरव देव की आराधना करें। वहीं केतु के लिए भगवान गणेश जी की आराधना करें।
इन चीज़ों को करें धारण
राहु ग्रह के दुष्प्रभावों से बचने के लिए आठ मुखी रुद्राक्ष या नागरमोथा की जड़ धारण करें। वहीं केतु के लिए नौ मुखी रुद्राक्ष या अश्वगंधा की जड़ पहनें।
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