कहते हैं कि ईशान कोण देवताओं का स्थान है और यहां स्वयं भगवान शिव रहे हैं ऐसे में देव गुरु बृहस्पति और केतु की दिशा भी ईशान कोण ही होती है और यही कारण है कि यह कोण पूजा-पाठ या अध्यात्म के लिए सबसे बेहतर माना जाता है. ऐसे में धन की इच्छा हेतु मंदिर को उत्तर दिशा की ओर होना चाहिये क्योंकि इससे लाभ मिलता है. इसी के साथ पूजाघर का दरवाजा लम्बे समय तक बंद नहीं रखना चाहिए क्योंकि यदि पूजाघर में नियमित रूप से पूजा नहीं की जाएगी तो वहां के निवासियों को दोषकारक परिणाम झेलने पड़ सकते हैं.
कहा जाता है पूजाघर में गंदगी एवं आसपास के वातावरण में शौरगुल होने से पूजाकक्ष दोषयुक्त हो जता हैं फिर चाहे वह वास्तुसम्मत ही क्यों न बना हो लेकिन वह दोषयुक्त माना जाता है. मान्यता के अनुसार ऐसे स्थान पर आकाश तत्व एवं वायु तत्व प्रदूषित हो जाते हैं जिससे घर में सुख और सम्पन्नता नहीं आती है. ऐसा होने से पूजा कक्ष में बैठकर पूजन करने वाले व्यक्तियों की एकाग्रता भंग हो जाती हैं और पूजा का शुभ फल भी प्राप्त नहीं होता है.
इसी के साथ विधार्थियो को ज्ञान प्राप्ति नहीं होती है और अगर आप सभी इसके विपरीत लाभ पाना चहिए हैं तो पूर्व दिशा में मंदिर की स्थापना करिए और पूर्व दिशा की ओर मुंह करके ही पूजा कीजिए. वहीं वास्तु के अनुसार इन जगहों पर मंदिर नहीं होने चाहिए. जैसे- घर में सीढ़ियों के नीचे, शौचालय या बाथरूम के पास में,ऊपर नीचे और बेसमेंट में आदि.
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