राष्ट्रपति के पास पहुंची कांग्रेस सरकार के घोटालों की रिपोर्ट, गवर्नर को मिल रही धमकियां

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बैंगलोर: कर्नाटक में MUDA (मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण) घोटाला एक बड़े राजनीतिक विवाद का केंद्र बन गया है, जिससे राज्य की कांग्रेस सरकार और राज्यपाल थावर चंद गहलोत के बीच तीखा टकराव शुरू हो गया है। ताजा घटनाक्रम में, राज्यपाल गहलोत ने घोटाले को लेकर राष्ट्रपति और केंद्रीय गृह मंत्रालय को एक विस्तृत रिपोर्ट भेजी है, जिसमें उन्होंने राज्य सरकार द्वारा अपने खिलाफ दवाब डालने की रणनीतियों पर गंभीर चिंता जताई है। यह विवाद तब बढ़ा जब राज्यपाल ने MUDA घोटाले में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ जांच की अनुमति दी, जिसमें कुछ प्रमुख राजनीतिक हस्तियों के नाम शामिल हैं। इस कदम से मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और KPCC अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने तीखा विरोध किया और कानूनी लड़ाई शुरू कर दी। कांग्रेस का कहना है कि राज्यपाल का यह निर्णय राजनीतिक रूप से प्रेरित है, जबकि गहलोत ने इसे कानून के तहत लिया गया कदम बताया है।

राज्यपाल ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजी गई अपनी रिपोर्ट में बताया कि उनके खिलाफ कांग्रेस द्वारा उग्र विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं। राज्यपाल के अनुसार, इन प्रदर्शनों में उनके पुतले जलाए गए और कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने यहां तक ​​धमकी दी कि वे राजभवन पर हमला करेंगे। गहलोत ने अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता जताई है, जिसके चलते उन्हें बुलेटप्रूफ वाहन भी दिया गया है। घोटाले के केंद्र में भूमि के गलत आवंटन और वित्तीय अनियमितता के आरोप हैं, जिसमें कांग्रेस के कई नेताओं के नाम सामने आए हैं। इसके बावजूद, कांग्रेस के शीर्ष नेता,, जैसे राहुल गांधी और प्रियंका गांधी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं। यह चुप्पी कई सवाल खड़े करती है, खासकर तब जब राज्य में भ्रष्टाचार और घोटाले के आरोपों से कांग्रेस सरकार घिरी हुई है। क्या राहुल और प्रियंका गांधी को इन गंभीर मुद्दों पर जवाबदेही नहीं लेनी चाहिए? उनकी चुप्पी पार्टी के नैतिक आधार पर सवाल खड़े करती है, और यह विचार बढ़ता जा रहा है कि क्या वे भी इस घोटाले के प्रति जानबूझकर आँखें मूंद रहे हैं ? सवाल ये भी है कि अगर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया एकदम पाक साफ़ हैं, तो जांच से क्यों भाग रहे हैं और जांच में खुद को निर्दोष साबित करने के बजाए, कांग्रेस, गवर्नर हाउस पर हमला करने की धमकी क्यों दे रही है ? 

इस बीच, राज्य के कांग्रेस नेता विरोध में और आक्रामक हो गए हैं। डीके शिवकुमार ने जिला मुख्यालयों में व्यापक प्रदर्शन का आह्वान किया है, जिसमें "राज्यपाल वापस जाओ" जैसे नारे लगाए जा रहे हैं और राज्यपाल गहलोत के पुतले जलाए जा रहे हैं। इस विवाद ने अब एक संवैधानिक संकट का रूप ले लिया है, जहां राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच दरार गहराती जा रही है। गहलोत ने अपनी रिपोर्ट में इस राजनीतिक संकट को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय और राष्ट्रपति से हस्तक्षेप की मांग की है, जिससे राज्य सरकार की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। सवाल यह उठता है कि इस घोटाले के बढ़ते दबाव के बीच क्या कांग्रेस नेतृत्व अपनी जिम्मेदारी निभाएगा या फिर भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी इस सरकार को चुप्पी से बचाने का प्रयास करेगा? आने वाले हफ्ते कर्नाटक की राजनीति में निर्णायक साबित हो सकते हैं, जहां हर किसी की नजर इस संवैधानिक और राजनीतिक टकराव के समाधान पर टिकी होगी।

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