नई दिल्ली: भारत में तक़रीबन 13,000 स्कूल, ईसाई संगठनों द्वारा संचालित किए जाते हैं. देश के सर्वोच्च बाल अधिकार निकाय के एक अनुमान के अनुसार, ये स्कूल आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के बच्चों को एडमिशन न देकर हर साल 2,500 करोड़ रुपये से ज्यादा की बचत कर रह हैं. बता दें कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को दाखिला देना शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अनुसार अनिवार्य है.
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) अल्पसंख्यक संस्थानों को अधिनियम के दायरे में लाने के लिए अनुमान का इस्तेमाल कर रहा है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, NCPCR की ओर से तैयार की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017-18 के लिए भारत में शिक्षा पर घरेलू सामाजिक उपभोग के मुताबिक, निजी गैर-सहायता प्राप्त संस्थानों में सामान्य पाठ्यक्रम के लिए प्रति छात्र औसत खर्च 18,267 रुपये था.
अल्पसंख्यक शिक्षा पर स्टडी के मुताबिक, पूरे भारत में फैले लगभग 12,904 ईसाई अल्पसंख्यक स्कूलों में बच्चों की तादाद 54,86,884 है, इसका मतलब है कि ये स्कूल विद्यार्थियों से 10,022.89 करोड़ रुपये कमाते हैं. रिपोर्ट में बताया गया है कि इन स्कूलों में वंचित या कमजोर वर्ग के बच्चों को दाखिला न देकर कुल बच्चों के 25 फीसद के खर्च पर बचत की जा रही है, जो कि 2,505.72 करोड़ रुपये है.
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