नई दिल्ली। केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए अध्यादेश को जारी करने की बढ़ती प्रवृत्ति पर सर्वोच्च न्यायालय ने गहरी नाराजगी जताई। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने कहा है कि अध्यादेश बार बार जारी करना संविधान के साथ धोखाधड़ी है। मिली जानकारी के अनुसार राष्ट्रपति या फिर राज्य के की संतुष्टि पर सवाल लगा दिए गए हैं। तो दूसरी ओर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कहा गया कि अध्यादेश लागू करने को लेकर राष्ट्रपति और राज्यपाल की संतुष्टि की न्यायिक समीक्षा के बाहर नहीं की गई है।
इस मामले में मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली 7 जज की संविधान पीठ ने अध्यादेश जारी करने का विरोध किया और इस पर अपनी आपत्ती भी ली। न्यायाधीशों ने कहा कि बार बार अध्यादेश जारी कर सरकार संविधान की अवमानना कर रही है। न्यायाधीशों ने कहा कि जो शक्ति संसद में पारित कानून में होती है वही अध्यादेश में होती है।
अध्यादेश संसद या फिर विधानसभा में प्रस्तुत किया जाना बेहद आवश्यक है। इस मामले में न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने निर्णय देते हुए कहा कि यदि अध्ययादेश को संसद या फिर विधानसभा में विधेयक के तौर पर पेश नहीं किया जाता तो फिर यह संविधान का उल्लंघन है।