SATIRE: आरक्षण की राजनीति या राजनीति का आरक्षण

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एक बार फिर देश में आरक्षण का जिन्न अपनी बोतल से निकलकर बाहर आ  गया है। अब इस जिन्न ने महाराष्ट्र को अपनी चपेट में ले लिया है और वहां पर आम आदमी इसकी चपेट में आ रहा है। आरक्षण का यह ​जिन्न  गुर्जर, पटेल, पाटीदार आंदोलन से होते हुए अब मराठा आंदोलन तक  पहुंच गया है। इस मुद्दे को लेकर जिस तरह से राजनीतिक पार्टियों का रवैया है, उससे  तो यही लगता है कि ये आरक्षण की राजनीति के जरिए राजनीति के आरक्षण की जुगाड़ में हैं। 


राजनीति के  आरक्षण का सीधा उदाहरण पटेल आंदोलन से निकले हार्दिक पटेल हैं, जिन्होंने जातिगत आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन चलाया और फिर राजनीति में आकर आरक्षण पर अपनी राजनीति खड़ी कर ली। आज के समय में सबसे बड़ा मुद्दा आरक्षण को लेकर हो रही राजनीति का ही है। संविधान निर्माण के समय समाज के सबसे दलित और पिछड़े वर्ग को आरक्षण दिया गया था, ताकि वह मुख्यधारा में आ सकें, लेकिन तब से लेकर आज तक राजनीतिक बिसात के चलते सभी पार्टियां आरक्षण—आरक्षण खेल रही हैं। चुनावों के पास आते ही आरक्षण का यह जिन्न अपनी बोतल से बाहर आकर आरक्षण—आरक्षण चिल्लाने लगता है। आरक्षण—आरक्षण चिल्लाते हुए कितने नेता देश के कर्णधार बन गए और कितने नेताओं ने इस मुद्दे से अपनी राजनीति चमकाई, इसकी गिनती ही नहीं है। 


आरक्षण की इस ओछी राजनीति में कितने मासूमों की जान गई और कितने बेकसूर मारे गए, इससे किसी को कुछ नहीं लेना देना, उनको तो सिर्फ अपनी रोटियां सेंकनी है फिर आग चाहे आगजनी की हो या फिर किसी मजलूम की लाश की। 

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