नई दिल्ली : भारत में आज के समय में आरक्षण सबसे बड़ा मुद्दा बनकर सामने आया है. भारत में आज हर कोई व्यक्ति आरक्षण चाहता है. गुजरात में हार्दिक पटेल भी आरक्षण की मांग को लेकर अनशन पर बैठे है. आरक्षण को लेकर कुछ दिन पहले ही पूरा महाराष्ट्र इस आग में झुलसा था.
देश में आरक्षण की मांग इस तरह से उठ रही है मानों जैसे आरक्षण मिलना अमृत मिलने के सामान हो. बीते दिनों ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर सुनवाई करते हुए अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि 'क्या अगर कोई आरक्षण का लाभ उठाकर किसी उच्च सरकारी पद पर बैठे जाता है तो क्या उसके बच्चे को भी पदोन्नति में आरक्षण देना चाहिए.' गौरतलब है कि 1932 में जब गोलमेज सम्मलेन में इस बात पर सहमति बनी की आरक्षण होना चाहिए तो आखिर इसका आधार क्या होना चाहिए तो वहाँ पर यह तय हुआ की समाज में सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से जो लोग समाज के मुख्य धारा से वंचित रह गए है उन्हें आर्थिक और शैक्षणिक सहायता देकर बराबरी में लाना.
लेकिन इसे देश की विपदा ही कहा जा सकता है कि यह नीति राजनीति की भेट चढ़ गई और अब तक उसी तरह चली आ रही है. अब आरक्षण देश में दीमक की तरह काम कर रहा है. देश में वह युवा इस नीति से काफी नाराज़ है जो कि आरक्षण से बाहर आता है और कई बार उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है.
अक्सर हमारे देश में यह होता है कि सरकारी परीक्षाओं, नौकरियों और अन्य चीजों में प्रतिभावान छात्र आरक्षण के कारण पीछे रह जाते है और इसके लिए वो आरक्षण को ही जिम्मेदार मानते है. खेर यहाँ पर मुद्दा किसी को आहत करने का नहीं था केवल हम यही बताने कि कोशिश कर रहे थे कि कैसे प्रतिभाशाली युवा आरक्षण न मिलने या यूं कहे आरक्षण के कारण अपना हक़ नहीं पा रहे है.
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