जब भी कभी कारगिल नामक शब्द हमारे कानों में सुनाई पड़ता है या हमारी आँखों में दिखाई पड़ता है तो हर भारतीय के मन में एक विजयी छवि उभरकर सामने आती है। कारगिल विजय दिवस के अतीत में जो भी कोई खोता है, वह कई यादों को लेकर लौटता है और इन्हीं में एक नाम शुमार है सेवानिवृत्त कैप्टन वली मोहम्मद का।
सेवानिवृत्त कैप्टन वली मोहम्मद इसके साक्षी रहे हैं। 21 साल पहले पड़ोसी दुश्मन पाक के साथ लड़ी गई जंग में उन्होंने भी शिरकत की थी और दुश्मन को परास्त करने में वली मोह्हमद का भी योगदान था। वली मोहम्मद मानते हैं कि उनके जीवन का सबसे अहम वर्ष 1999 रहा है। वे कहते हैं कि उस दिन शाम ढलने को थी और मेरी पोस्टिंग सिलीगुड़ी सिकना में थी। तब ही इंजीनियरिंग सेवा बटालियन को इस बात की सूचना मिलती है कि लेह क्षेत्र में तैनाती की गई है, तो फिर हम वहां के लिए उसी समय निकल पड़ें।
वली मोहम्मद उस लम्हे को याद करते हुए कहते हैं कि कारगिल पहाड़ियों में 6454 पोस्ट पर तैनाती हुई थी। पहाड़ों की ऊंचाई इतनी अधिक थी जिन्हे देखकर रूह कांप उठे। वहीं पर हमने पहाड़ों के बीच से रास्ते तैयार किए थे। करीब एक माह तक हमें इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि सूर्य कब ढला और कब नया सवेरा आ गया। पड़ोसी देश पकिस्तान लगातार नापाक हरकतें किए जा रहा था। वहीं हमने भी दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देने का इरादा कर लिया था।
61 साल के माँ भारती के वीर सपूत मोहम्मद आगे कहते हैं कि माता-पिता ने देश के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए कहा था। कारगिल में शहीद हुई अपने साथियों की शहादत पर वली कहते हैं कि काश अपने साथियों के स्थान पर मैं शहीद हो गया होता। मैं आज भी पाकिस्तान की इस समय की नापाक हरकतों से रूबरू होता हूं तो बस यहीं कहता हूं कि पड़ोसी मुल्क विश्वास करने के काबिल नहीं है। वली मोहम्मद आज सेवानिवृत्त जीवन यापन कर रहे हैं।
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