क्रिकेट के नए नए नियमों, फॉर्मेट्स और आधुनिक बल्लों और बल्लेबाजों की शैली ने गेंदबाजों के लिए मैदान को कब्रगाह बना डाला है. इसे लेकर कई पूर्व क्रिकेटर और खेल के जानकर कई बार चिंता जता चुके है. अब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) गेंदबाजो के लिए फिजिक्स में दिमाग खपा रहा है. गेंद की स्विंग को लेकर एयरोस्पेस विभाग के प्रोफेसर और उनके साथ दो छात्रों ने अध्ययन कर नई गेंद को रिवर्स स्विंग कराने का फार्मूला निकाल लिया है.
एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. संजय मित्तल के साथ छात्र राहुल देशपांडे और रवि शाक्या ने स्विंग की फिजिक्स के बारे में कहा कि बॉल को स्विंग कराने में सीम, स्पीड, सतह का खुरदरापन और मौसम की भूमिका रहती है. गेंदबाज पुरानी गेंद से तो रिवर्स स्विंग करा सकते हैं लेकिन नई गेंद से नहीं. गेंद फेंकते समय सीम का एंगल और गति के साथ संबंध समझ लिया जाए तो यह बेहद आसान है.
क्या है थ्योरी और अध्ययन के तथ्य -
-विशेषज्ञों के मुताबिक बॉल की सीम (बीच की सिलाई) को उसकी गति की दिशा में 20 डिग्री झुकाकर 30 से 119 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से फेंकने पर बॉल स्विंग करती है.
-गति 125 किमी प्रति घंटा से ऊपर होने पर रिवर्स स्विंग करती है.
-अगर बॉल 119 से 125 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से फेंकी जाती है तो उसकी ट्रेजेक्टरी (गेंद के रास्ते) के पहले भाग में रिवर्स स्विंग और फिर स्वाभाविक स्विंग होती है.
-इसे लेट स्विंग भी कहा जा सकता है.
-स्विंग को लेकर सरफेस रफनेस के प्रभाव के अध्ययन के लिए उन गेंदों का भी अध्ययन किया गया, जिसे खिलाड़ी हाथों से खुरदरा बनाते हैं.
-नई बॉल की तुलना में खुरदरी बॉल मंद गति से स्विंग करती है.
-20 से 70 किमी प्रति घंटे की रफ्तार वाली गेंद में स्वाभाविक स्विंग होती है, जबकि 79 से 140 प्रति घंटे की रफ्तार वाली गेंद में रिवर्स स्विंग.
-ऐसे में साफ है कि एक कुशल मध्यम तेज गति के गेंदबाज को नई गेंद के मुकाबले पुरानी गेंद से बल्लेबाज को परेशान करने में ज्यादा आसानी होती है.
-संभावित परिवर्तन हैं- मौजूदा गेंद की मोटाई में तकरीबन एक मिमी की कमी लाना, इससे बॉल में स्विंग के मौके बढ़ेंगे.
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