चेन्नई: तमिलनाडु की एमके स्टालिन सरकार ने कर्नाटक के साथ चल रहे कावेरी जल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया है और दावा किया है कि पड़ोसी राज्य ने "अपना रुख बदल लिया है" और 15,000 क्यूसेक के मुकाबले केवल 8,000 क्यूसेक पानी की कम मात्रा छोड़ने की मंजूरी दी है। शुक्रवार को दिल्ली में कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण की बैठक में चर्चा पर बोलते हुए, तमिलनाडु के जल संसाधन मंत्री दुरईमुरुगन ने कहा कि राज्य ने अपनी आवश्यकता को जोरदार ढंग से रखा है। इसके बावजूद, कर्नाटक ने अपना रुख बदल दिया और कहा कि वे केवल 8,000 क्यूसेक पानी छोड़ेंगे, वह भी केवल 22 अगस्त तक।
मंत्री ने कहा कि इससे पहले 10 अगस्त को कावेरी जल नियामक समिति ने एक बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया था कि कर्नाटक द्वारा 15 दिनों के लिए प्रत्येक दिन 15,000 क्यूसेक पानी छोड़ा जाएगा। मंत्री दुरईमुरुगन ने कहा कि "इसलिए, तमिलनाडु सरकार के पास सुप्रीम कोर्ट जाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। जल्द ही, शीर्ष अदालत में मामला दायर किया जाएगा। न्याय की जीत होगी और हमें पानी मिलेगा क्योंकि मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली सरकार दृढ़ संकल्पित है।"
रिपोर्ट के मुताबिक, मंत्री ने आगे कहा कि कर्नाटक के चार बांधों की संयुक्त भंडारण क्षमता 114.571 टीएमसी फीट है और इसमें 93.535 टीएमसी भंडारण है, जो लगभग 82 फीसदी है. यह आरोप लगाते हुए कि कर्नाटक के पास तमिलनाडु के साथ पानी साझा करने का ''दिल'' नहीं है, दुरईमुरुगन ने कहा कि दशकों पहले कावेरी विवाद उठने के बाद से कर्नाटक सरकार का यही रुख रहा है। उन्होंने कहा, “कर्नाटक को चिंता नहीं है, भले ही खड़ी फसलें (कुरुवई, अल्पकालिक धान की फसल) मुरझा जाएं।”
गौरतलब है कि तमिलनाडु सरकार का यह फैसला कुछ दिनों बाद आया है जब सीएम स्टालिन ने पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कर्नाटक से कुरुवई की खेती के लिए तुरंत कावेरी का पानी छोड़ने के लिए हस्तक्षेप करने की मांग की थी। उन्होंने कहा कि, ''सर्वोच्च न्यायालय ने मासिक कार्यक्रम के अनुसार, बिलिगुंडुलु में तमिलनाडु को दिए जाने वाले पानी का हिस्सा तय किया। लेकिन दुर्भाग्य से, कर्नाटक उपरोक्त आदेश का अक्षरश: पालन नहीं कर रहा है और कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (CWMA) के निर्देशों का भी पालन नहीं कर रहा है।''
बता दें कि, तमिलनाडु की सत्ताधारी DMK और कर्नाटक की सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस, दोनों भाजपा के खिलाफ बनाए गए विपक्षी दलों के I.N.D.I.A गठबंधन का अहम हिस्सा हैं, लेकिन दोनों दल कावेरी के जल के लिए आपस में लड़ रहे हैं। इसे I.N.D.I.A गठबंधन में दरार के रूप में भी देखा जा रहा है, क्योंकि दो सहयोगी राज्य इस मुद्दे को आपसी बातचीत से भी सुलझा सकते थे, इसके लिए सर्वोच्च अदालत जाने की आवश्यकता क्यों पड़ रही है ?