घर का मंदिर हो या बाहर कहीं मंदिर हो घंटे या घंटियां सभी रखी जाती है। यह विशेष 4 प्रकार की होती हैं। इनमे पहली होती है गरूड़ घंटी, दूसरी द्वार घंटी, तीसरी हाथ घंटी और चौथा घंटा। मंदिर या घर के पूजाघर में आपने देखा होगा गरुड़ घंटी को, जिसे पूजा या आरती करते वक्त बजाया जाता है रखा जाता है। अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं इसको रखने और बजाने के फायदे।
सृष्टि का नाद : सृष्टि की रचना में ध्वनि का महत्वपूर्ण योगदान है। जी हाँ और ध्वनि से प्रकाश की उत्पत्ति और बिंदु रूप प्रकाश से ध्वनि की उत्पत्ति मानी जाती है। कहते हैं जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ तब जो नाद था, घंटी की ध्वनि को उसी नाद का प्रतीक माना जाता है। जी हाँ और घंटी के रूप में सृष्टि में निरंतर विद्यमान नाद ओंकार या ॐ की तरह है जो हमें यह मूल तत्व की याद दिलाता है।
गरूड़ घंटी : गरूढ़ घंटी छोटी-सी होती है जिसे एक हाथ से बजाया जा सकता है। वहीं इसको गरूड़ इसलिए कहते हैं क्योंकि इसके शीर्ष पर भगवान गरुड़ की आकृति बनी होती है। कहा जाता है भगवान गरुड़ के नाम पर है गुरुड़ घंटी जिस का मुख गरुड़ के समान ही होता है। जी हाँ और भगवान गरुड़ को विष्णु का वाहन और द्वारपाल माना जाता है। वहीं अधिकतर मंदिरों में मंदिर के बाहर आपको द्वार पर गरुड़ भगवान की मूर्ति मिलेगी। दक्षिण भारत के मंदिरों में अक्सर इसे देखा जा सकता है।
कालचक्र का प्रतीक घंटी : कहा जाता है घंटी या घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है। जी दरअसल ऐसा माना जाता है कि जब प्रलय काल आएगा तब भी इसी प्रकार का नाद यानि आवाज प्रकट होगी। चारों ओर घंटियों की आवाज सुनाई देगी।
वातावरण शुद्ध : जिन स्थानों पर घंटी बजने की आवाज नियमित आती है वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है।
पापों का करती है नाश : स्कंद पुराण के अनुसार मंदिर में घंटी बजाने से मानव के सौ जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और यह भी कहा जाता है कि घंटी बजाने से देवताओं के समक्ष आपकी हाजिरी लग जाती है।
आज है त्रिविक्रम द्वादशी, इस तरह करें पूजा
घर की सुख-शांति के लिए सोने से पहले भूल से भी ना करें ये काम