नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश की तत्कालीन सपा सरकार के पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति को रेप के एक मामले में मिली जमानत की जांच में यह तथ्य सामने आया है कि प्रजापति को जमानत देने के लिए 10 करोड़ रुपये का लेन-देन हुआ था. साजिश रचकर उन्हें जमानत दिलाने में एक वरिष्ठ जज भी शामिल थे. यह चौंकाने वाला खुलासा इलाहाबाद हाई कोर्ट की एक जांच में हुआ है. इससे न्यायपालिका की ईमानदारी और निष्पक्षता पर सवालिया निशान लग गया है.
गौरतलब है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस दिलीप बी भोसले ने प्रजापति को जमानत मिलने की जांच के आदेश दिए थे. इस जांच में संवेदनशील मामलों की सुनवाई करने वाली अदालतों में जजों की नियुक्ति में उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार की बात सामने आई है. चीफ जस्टिस की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस भोसले की अतिरिक्त जिला और सेशन जज ओपी मिश्रा को 7 अप्रैल को उनके रिटायर होने से ठीक तीन सप्ताह पहले ही पोक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस) जज के रूप में नियमों की अनदेखी कर नियुक्त किया गया था. जबकि 18 जुलाई 2016 से पोक्सो जज लक्ष्मी कांत राठौर बेहतरीन काम कर रहे थे. जज ओपी मिश्रा ने ही गायत्री प्रजापति को 25 अप्रैल को रेप के मामले में जमानत दी थी.
बता दें कि इंटेलिजेंस ब्यूरो की रिपोर्ट में जज की पोक्सो अदालत में रिश्वत देने की बात सामने आई है. इस रिपोर्ट के अनुसार गायत्री प्रजापति को 10 करोड़ रुपये के बदले में जमानत दी गई थी. इस रकम से पांच करोड़ रुपये उन तीन वकीलों को दिए गए जो मामले में बिचौलिए की भूमिका निभा रहे थे, बाकी के पांच करोड़ रुपये पोक्सो जज (ओपी मिश्रा) और उनकी नियुक्ति संवेदनशील मामलों की सुनवाई करने वाली कोर्ट में करने वाले जिला जज राजेंद्र सिंह को दिए गए थे. उनकी पदोन्नति तय थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने अब उनका नाम वापस ले लिया है. इस रिपोर्ट के बाद उत्तर प्रदेश में न्यायपालिका में नियुक्ति और स्थानांतर को लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं.
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