राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानी आरएसएस इन दिनों अपनी छवि बदलने की कोशिश में जुटा हुआ है। इस समय नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आरएसएस का मंथन शिविर चल रहा है। इस शिविर में संघ प्रमुख मोहन भागवत इन दिनों संघ कार्यकर्ताओं को कई तरह के निर्देश और सीख दे रहे हैं। इस कार्यक्रम में संघ ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को भी आमंत्रित किया था, हालांकि गांधी ने इसमें जाने से इनकार कर दिया, वहीं मोहन भागवत ने अब संघ का झंडा भगवा होने के लेकर भी बयान दिया है।
मोहन भागवत ने कार्यक्रम में कहा कि हम तिरंगे का सम्मान करते हैं, लेकिन हमारा गुरू भगवा झंडा है। संघ प्रमुख ने यह बयान देकर तिरंगे और भगवा झंडे को लेकर चल रही राजनीति को ठंडा करने की कोशिश की है। वहीं उन्होंने संघ के कार्यक्रम में विपक्षी पार्टियों के नेताओं को आमंत्रित भी किया, इसे देखकर तो यही लगता है कि संघ अब अपनी कट्टर हिंदुवादी छवि को बदलने की मंशा रखता है। दरअसल, संघ को लेकर एक आम धारणा यही है कि संगठन कट्टर हिंदुत्व में भरोसा रखता है। लेकिन अब संघ अपने कार्यों से आम जनमानस में यह संदेश देना चाहता है कि आरएसएस की नीति विरोध की नहीं बल्कि अपनत्व की है और वह हिंदुत्व से ज्यादा देश को महत्व देता है। अपनी इसी रणनीति के तहत आरएसएस अब अपने विरोधियों को भी प्रेम से अपने कार्यक्रम में बुला रहा है, ताकि उस पर लगा हिंदुत्व का ठप्पा कुछ फीका पड़ सके।
दरअसल, आरएसएस के कारण भाजपा पर भी हिंदुत्व का ठप्पा लग गया है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद यह बात ज्यादा उजागर होने लगी है। इसीलिए अब संघ चाहता है कि इस छवि को बदला जाए, ताकि आगामी चुनावों में भाजपा को इसका फायदा मिल सके। हाल ही में पीएम मोदी ने बोहरा समाज के कार्यक्रम में शामिल होकर भी हिंदुत्व से इतर देशभक्ति का कुछ ऐसा ही संदेश देने की कोशिश की थी। अब देखते हैं कि आगामी चुनावों में संघ की यह नीति कितनी सफल हो पाती है? क्या जनता संघ और बीजेपी के इस बदले स्वरूप को पसंद करती है या फिर नकार देती है।
जानकारी और भी