नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि जब किसी समाज की प्रजनन दर 2.1 से नीचे चली जाती है, तो उस समाज का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है। यह बयान उन्होंने एक कार्यक्रम में दिया, जहां जनसंख्या नीति पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि समाज को अपनी संख्या बनाए रखने के लिए कम से कम तीन बच्चों की आवश्यकता है।
भागवत ने यह भी बताया कि भारत की जनसंख्या नीति 1998 या 2002 में तय की गई थी, जिसमें 2.1 की प्रजनन दर बनाए रखने पर जोर दिया गया था। उन्होंने आधुनिक जनसंख्या विज्ञान का हवाला देते हुए कहा कि संख्या का महत्व है, क्योंकि समाज का बने रहना जरूरी है। हालांकि, इस बयान पर राजनीतिक हलकों में तीखी प्रतिक्रिया हुई। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता फखरुल हसन चांद ने कहा कि भागवत का यह बयान भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए असहज स्थिति पैदा कर सकता है। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी जनसंख्या जैसे मुद्दों का इस्तेमाल राजनीति के लिए करती है।
कांग्रेस नेता उमंग सिंघार ने भी भागवत के बयान पर सवाल उठाते हुए कहा कि बढ़ती जनसंख्या के साथ बेरोजगारी और घटती कृषि भूमि जैसी समस्याओं का समाधान कैसे होगा। उन्होंने सुझाव दिया कि यदि मोहन भागवत और अन्य नेता इस मुद्दे पर गंभीर हैं, तो उन्हें खुद इस दिशा में कदम उठाना चाहिए।
वहीं, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यदि भागवत जनसंख्या वृद्धि की बात करते हैं, तो क्या वे यह सुनिश्चित करेंगे कि हर परिवार को आर्थिक मदद मिलेगी? उन्होंने यह भी कहा कि यदि भागवत अपने समुदाय से शुरुआत करके उदाहरण प्रस्तुत करें, तो इसे बेहतर समझा जा सकता है।
भागवत के इस बयान के बाद जनसंख्या नीति पर बहस तेज हो गई है। विपक्ष ने इसे राजनीतिक मुद्दा बताया है, जबकि आरएसएस प्रमुख ने इसे समाज के अस्तित्व से जोड़ते हुए जनसंख्या संतुलन बनाए रखने पर जोर दिया है।
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