नई दिल्ली: देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु की एमके स्टालिन सरकार को बड़ा झटका देते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को राज्य में पथ संचालन (RSS Root March in Tamil Nadu) की अनुमति दे दी है। दरअसल, RSS ने तमिलनाडु में 47 स्थानों पर पथ संचलन निकलने की अनुमति मांगी थी, मगर तमिलनाडु सरकार ने अनुमति देने से साफ इंकार कर दिया था। आज सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (11 अप्रैल) को मद्रास हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने वाली तमिलनाडु सरकार की अपील को ठुकरा दिया, जिसमें RSS को राज्य में मार्च निकालने की अनुमति दी गई थी। शीर्ष अदालत के न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की बेंच ने तमाम तथ्यों पर गौर करने के बाद 10 फरवरी को दिए गए मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखने का फैसला लिया है।
इससे पहले, संघ की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने कोर्ट में कहा था कि अनुच्छेद 19(1)(बी) के तहत बगैर हथियारों के शांतिपूर्ण तरीके से एकत्र होना हर भारतीय का मौलिक अधिकार है। इसे बहुत सशक्त आधार के अभाव में किसी भी प्रकार से कम नहीं किया जा सकता है। जेठमलानी ने कोर्ट में कहा कि, 'जिन क्षेत्रों में ये मार्च निकाले गए, वहां से हिंसा की एक भी घटना की खबर नहीं है।' मामले की सुनवाई के दौरान भी शीर्ष अदालत ने तमिलनाडु की स्टालिन सरकार के रवैये की आलोचना करते हुए जमकर फटकार भी लगाई थी। जजों ने स्टालिन सरकार के दोहरे रवैए को देखते हुए कहा था कि 'सरकार किसी के लिए लोकतंत्र की भाषा बोलती है और किसी के लिए सत्ता की भाषा बोलती है।' दरअसल, 2 अक्टूबर 2022 को पथ संचालन निकालने के लिए RSS ने राज्य सरकार से इजाजत माँगी थी। लेकिन, तमिलनाडु सरकार ने सड़कों पर मार्च निकालने की इजाजत नहीं दी और बंद परिसरों में कार्यक्रम करने को कहा। सरकार ने दलील दी थी कि 6 ज़िले ऐसे हैं, जहाँ प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) का काफी प्रभाव है, यानी ये इलाके मुस्लिम बहुल हैं। ऐसे में राज्य का माहौल बिगड़ सकता है।
RSS ने उस समय इसका विरोध किया था और सरकार के इस फैसले को अपने मौलिक अधिकारों का हनन बताया था। राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ RSS ने तमिलनाडु स्थित मद्रास उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने 4 नवंबर 2022 को सुनवाई करते हुए RSS को 6 जगहों को छोड़कर अन्य स्थानों पर कुछ शर्तों के साथ मार्च निकालने की अनुमति दी थी। हाईकोर्ट द्वारा लगाई गई शर्तों में कहा गया था कि RSS के स्वयंसेवक बगैर लाठी-डंडे या हथियारों के मार्च निकालेंगे। इसके साथ ही यह भी शर्त लगाई गई थी कि वे ऐसे किसी भी मुद्दे पर नहीं बोलेंगे, जिससे देश की अखंडता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े। हालाँकि, अदालत के फैसले से नाखुश होकर संघ ने 6 नवंबर को होने वाले रूट मार्च को स्थगित कर दिया। इसके साथ ही उच्च न्यायालय से इस पर पुनर्विचार करने की गुहार लगाई।
इसके बाद मद्रास उच्च न्यायालय की डबल बेंच ने 10 फरवरी 2023 को को सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट की एकल खंडपीठ द्वारा लगाई गई शर्तों को हटा दिया। डबल बेंच ने एक स्वस्थ लोकतंत्र में विरोध के महत्व पर बल दिया था। इस दौरान तमिलनाडु सरकार ने उच्च न्यायालय में RSS के मार्च की इजाजत देने का विरोध किया। उच्च न्यायालय के डबल बेंच के फैसले के विरोध में तमिलनाडु सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की, जिसे आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने RSS के पक्ष में फैसला सुनाया। बता दें कि, इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 17 मार्च 2023 को हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी थी। इसके बाद 27 मार्च को अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
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