दुखद! नहीं रहे पहाड़ी टोपी को पहचान दिलाने वाले कैलाश भट्ट

दुखद! नहीं रहे पहाड़ी टोपी को पहचान दिलाने वाले कैलाश भट्ट
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देहरादून: उत्तराखंड से दुखःद खबर सामने आई है। पहाड़ी टोपी को पहचान दिलाने वाले शिल्पी कैलाश भट्ट का निधन हो गया है। कैलाश भट्ट ने उत्तराखंड की टोपी एवं पारंपरिक परिधान मिरजई को भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया में भी पहचान दिलाई थी। कैलाश गोपेश्वर के हल्दापानी के रहवासी थे। 52 साल के कैलाश ने देहरादून के श्रीमहंत इंदिरेश हॉस्पिटल में उन्होंने आखिरी सांस ली। वह अपने पीछे पत्नी, बेटे व बेटी को छोड़ गए हैं। कैलाश के देहांत से लोक संस्कृति से जुड़े लोग स्तब्ध हैं।

आपको बता दें कि कैलाश मशहूर रंगकर्मी भी थे। कैलाश बाल्यकाल से ही पारंपरिक परिधानों के निर्माण के कार्य में लगे हुए थे। लोक शिल्पी कैलाश भट्ट ने अपने इसी हुनर के जरिए मिरजई, आंगड़ी, झकोटा, घुंघटी,गाती, ऊनी सलवार,त्यूंखा, अंगोछा, दौंखा, सणकोट, गमछा, लव्वा,पहाड़ी टोपी जैसे उत्तराखंडी पारंपरिक वस्त्रों से नई पीढ़ी को बताया। कैलाश ने श्रीनंदा देवी का परिधान एवं देवनृत्य में इस्तेमाल होने वाले मुखौटा को लोकप्रियता हासिल करवाई।

गौरतलब है कि गणतंत्र दिवस के अवसर पर पीएम नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंडी टोपी पहनी थी, जिस पर प्रदेश के लोकप्रिय फूल ब्रह्मकमल का चिह्न भी अंकित था। उसके बाद से यह टोपी उत्तराखंड में ट्रेंड बन गई है। बीजेपी के कार्यकर्ता इन दिनों पहाड़ी टोपी पहनकर चुनाव प्रचार के रंग में रंगे नजर आए थे, तो स्थानीय लोग भी ये टोपी पहनने में रुचि ले रहे हैं।

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