संसद का मानसून सत्र शुरू हुए तीन दिन हो चुके हैं। इन तीन दिनों के भीतर कई बार सदन की मर्यादा को लेकर बातें सुनी गई हैं। सदन की क्या मर्यादा है? सदन की मर्यादा का पालन करें सांसद, जैसे वाक्य लोकसभा अध्यक्ष ने सदन में कई बार कहे हैं। इतना ही नहीं मानसून सत्र शुरू होने से पहले भी उन्होंने सदन की मर्यादा का पालन करने को लेकर सांसदों को पत्र लिखा था।
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ऐसा लगता है कि सुमित्रा महाजन के इस पत्र का सांसदों पर कुछ भी फर्क नहीं पड़ा और पहले ही दिन विपक्षी सांसदों ने सदन में हंगामा कर एक बार फिर संसद के नियमों को तोड़ा। वहीं मानसून सत्र के तीसरे दिन अविश्वास प्रस्ताव के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने संसद की मर्यादा को तोड़ते हुए प्रधानमंत्री की कुर्सी के पास जाकर उन्हें गले लगाया। इस घटना पर लोकसभा अध्यक्ष ने बाद में उन्हें फटकार भी लगाई। लेकिन यहां पर बात आती है कि आखिर किसी पार्टी का अध्यक्ष कैसे सदन की मर्यादा को तोड़ सकता है। भले ही पीएम नरेंद्र मोदी किसी पार्टी से संबंधित हैं, लेकिन सदन में वह पीएम की कुर्सी पर बैठे थे, ऐसे में पीएम की कुर्सी का अपमान करते हुए उन्हें गले लगा लेना सदन की मर्यादा की खिलाफत ही है।
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अगर हम सदन की मर्यादा भंग करने वालों की बात करें, तो यह वे हैं, जिन्हें हमने ही चुनकर वहां भेजा है। हर सत्र के दौरान सदन में तोड़—फोड़ हंगामा करना, एक—दूसरे पर व्यक्तिगत लांछन लगाने की घटनाएं होती रहती हैं। कई बार तो सदन की कुर्सियां एक—दूसरे पक्ष पर फेंकी जाती हैं। क्या सदन इसीलिए संचालित होता है कि हमारे तथाकथित भविष्य निर्माता इस तरह का आचरण करें। सदन वह स्थान हैं, जहां पर देश का भविष्य निर्धारण होता है और इस जगह भविष्य निर्माताओं का ऐसा आचरण कहां तक उचित है?
अब अगर हम सदन की मर्यादा तोड़ने में हुए खर्चे की बात करें, तो सत्र के दौरान एक मिनट का खर्च करीब ढ़ाई लाख रुपये खर्च आता है, ऐसे में अगर सदन में आधे दिन भी हंगामा हुआ, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश की अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर पड़ता है। आज सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर कब सांसद सदन की मर्यादा का पालन करेंगे? वह कौन सा दिन होगा जिस दिन हम यह कह सकेंगे कि आज सदन की गरिमा को नहीं रौंदा गया?