ओलंपिक काउंसिल ऑफ एशिया ने 2026 में जापान के नागोया में आयोजित होने वाले एशियाई खेलों में योग को एक प्रदर्शन खेल के रूप में सम्मिलित करने का निर्णय लिया है। हालांकि, यह फैसला ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु को पसंद नहीं आया है तथा उन्होंने इसके प्रति अपनी नाखुशी जताई है। सद्गुरु ने इस फैसले का विरोध करते हुए कहा कि योग को सदियों से आत्म-विकास और आंतरिक उन्नति के एक शक्तिशाली साधन के रूप में देखा गया है, जिसकी तुलना या प्रतिस्पर्धा किसी से नहीं की जानी चाहिए।
सद्गुरु ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, "यह बहुत ही परेशान करने वाली तथा निराशाजनक बात है कि योग को एक प्रतिस्पर्धात्मक खेल के क्षेत्र में लाया जा रहा है। योग आत्म-विकास का एक शक्तिशाली उपकरण है, जो एक व्यक्ति को सीमित अनुभवों से लेकर अनंत अनुभवों तक ले जाता है। इस प्रकार हम योग के शक्तिशाली विज्ञान को सर्कस जैसी प्रतिस्पर्धात्मक गतिविधि में बदल देंगे।" आगे उन्होंने कहा कि योग का वास्तविक उद्देश्य व्यक्ति को उसकी सीमाओं से परे ले जाकर जीवन के गहरे आयामों को जानने में मदद करना है, जो इसे प्रतिस्पर्धात्मक ढांचे के लिए अनुपयुक्त बनाता है। योग का सार किसी भी तरह की तुलना या मुकाबले में नहीं है। सद्गुरु ने उम्मीद जताई कि जिस सभ्यता ने योग के विज्ञान को जन्म दिया, वह इस बात को सुनिश्चित करने के लिए बुद्धिमानी से काम लेगी कि योग का मजाक न बने।
वही इस प्रकार, सद्गुरु ने एशियाई खेलों में योग को शामिल करने के फैसले की कड़ी आलोचना की है, जबकि इस फैसले को योग के भौतिक पहलुओं के वैश्वीकरण और उसे बढ़ावा देने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। सद्गुरु की चिंता इस बात को लेकर भी है कि योग के नाम पर मिथक और गलत धारणाएं फैल सकती हैं। एक अन्य पोस्ट में उन्होंने लिखा, "योग सिर्फ एक व्यायाम नहीं है, बल्कि यह एक प्रक्रिया और एक प्रणाली है।"
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