नई दिल्ली: तमिलनाडु की सत्ताधारी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) नेता उदयनिधि स्टालिन और कांग्रेस के प्रियांक खड़गे की सनातन धर्म विरोधी टिप्पणियों पर भारत में विवाद के बीच, संयुक्त राज्य अमेरिका के एक शहर ने 3 सितंबर को सनातन धर्म दिवस घोषित किया है। संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) में केंटुकी के लुइसविले के मेयर ने शहर में 3 सितंबर को सनातन धर्म दिवस घोषित किया है।
लुइसविले में केंटुकी के हिंदू मंदिर में महाकुंभ अभिषेकम उत्सव के दौरान मेयर क्रेग ग्रीनबर्ग की ओर से डिप्टी मेयर बारबरा सेक्स्टन स्मिथ द्वारा इस संबंध में आधिकारिक उद्घोषणा पढ़ी गई। इस कार्यक्रम में आध्यात्मिक नेता चिदानंद सरस्वती, परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश के अध्यक्ष श्री श्री रविशंकर और भगवती सरस्वती के साथ-साथ उपराज्यपाल जैकलीन कोलमैन, डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ कीशा डोर्सी और कई अन्य आध्यात्मिक नेताओं और गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया।
भारत में विपक्षी नेताओं द्वारा सनातन धर्म विरोधी बयान:-
बता दें कि, तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन के बेटे और पिता के ही कैबिनेट में मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने शनिवार को तमिलनाडु में एक कार्यक्रम के दौरान सनातन धर्म की तुलना डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों से करते हुए इसे पूरी तरह खत्म करने की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि, 'जैसे हम डेंगू, मलेरिया का विरोध नहीं करते, उसे ख़त्म करते हैं, उसी तरह हमें सनातन धर्म का भी विरोध करने की बजाए उसे पूरी तरह ख़त्म करना होगा।' कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम और लक्ष्मी रामचंद्रन ने उदयनिधि के इस बयान का समर्थन किया था। वहीं, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के पुत्र और कर्नाटक सरकार में मंत्री प्रियांक खड़गे ने भी उदयनिधि के बयान का समर्थन किया था। वहीं, DMK नेता ए राजा ने कहा था कि सनातन धर्म की तुलना एड्स से की जानी चाहिए। उन्होंने कहा था कि, 'उदयनिधि स्टालिन ने डेंगू और मलेरिया से तुलना करके विनम्रता दिखाई है।'
गौर करने वाली बात ये भी है कि, विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A में 26 दलों में से किसी ने भी उदयनिधि के बयान का सार्वजनिक तौर पर विरोध नहीं किया है और न ही उनसे अपना बयान वापस लेने की मांग की है, मोहब्बत की दूकान खोलने का दावा करने वाले राहुल गांधी भी इस मुद्दे पर मौन हैं। केवल भाजपा ही उदयनिधि का विरोध कर रही है और उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रही है। यहाँ तक कि, हिंदुत्व की राजनीति करने वाली शिवसेना (उद्धव गुट) ने भी उदयनिधि के बयान पर मौन साधे रखना ही उचित समझा, शायद उद्धव ठाकरे अपने I.N.D.I.A. गठबंधन के साथियों को नाराज़ नहीं करना चाहते।
हालाँकि, जब विवाद बढ़ा तो उदयनिधि ने सफाई दी कि, वे सामाजिक समानता की बात कर रहे थे, यानी जातिवाद की। लेकिन, गौर करने वाली बात ये है कि, जातिवाद मिटाने की बात प्रधानमंत्री मोदी, RSS चीफ मोहन भागवत से लेकर कई दलों के कई नेता करते रहे हैं, इसे समाज सुधार की कोशिश के रूप में देखा जाता है और कोई विवाद नहीं होता, लेकिन जब पूरे धर्म का ही नाश करने की बात की जाए और नेतागण (कुछ कांग्रेस नेताओं का उदयनिधि को समर्थन) उसका समर्थन भी करें, तो ये निश्चित ही नफरत फ़ैलाने वाली बात है। यही कारण है कि, कई पूर्व जजों, आईएएस अधिकारीयों (262 गणमान्य नागरिकों) ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर उदयनिधि के बयान पर स्वतः संज्ञान लेने और कार्रवाई करने का आग्रह किया है।
यह भी गौर करने वाली बात है कि, यदि किसी दूसरे धर्म को इस तरह खत्म करने की बात कही गई होती, तो क्या यही होता, जो उदयनिधि वाले मामले में हो रहा है ? क्योंकि, जातिवाद तो हर धर्म में है, इस्लाम में भी शिया-सुन्नी के साथ 72 फिरके (कुछ जगह 73) हैं, जिनमे से कई एक-दूसरे के विरोधी हैं, तो वहीं ईसाईयों में प्रोटेस्टेंट- रोमन केथलिक, पेंटिकोस्टल, यहोवा साक्षी में आपसी विरोध है। तो क्या समाज सुधारने के लिए उदयनिधि, इन धर्मों को पूरी तरह ख़त्म करने की बात कह सकते हैं ? या फिर दुनिया में एकमात्र धर्म जो वसुधैव कुटुंबकम (पूरा विश्व एक परिवार है), सर्वे भवन्तु सुखिनः (सभी सुखी रहें) जैसे सिद्धांतों पर चलता है, जो यह मानता है कि, ईश्वर एक है और सभी लोग उसे भिन्न-भिन्न रूप में पूजते हैं, उस सनातन को ही निशाना बनाएँगे ?
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