नई दिल्ली: भारत सरकार ने 1990 बैच के राजस्थान कैडर के आईएएस अधिकारी संजय मल्होत्रा को भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) का नया गवर्नर नियुक्त किया है। मल्होत्रा, मौजूदा गवर्नर शक्तिकांत दास की जगह लेंगे, जिनका कार्यकाल 10 दिसंबर को समाप्त हो रहा है। 11 दिसंबर को संजय मल्होत्रा आरबीआई के 26वें गवर्नर के रूप में कार्यभार संभालेंगे।
संजय मल्होत्रा ने अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री आईआईटी कानपुर से पूरी की और प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की। उनके पास राज्य और केंद्र सरकार दोनों स्तरों पर वित्त, कराधान, ऊर्जा, और आईटी जैसे क्षेत्रों में 30 से अधिक वर्षों का अनुभव है। नवंबर 2020 में, उन्हें आरईसी (Rural Electrification Corporation) का चेयरमैन और एमडी नियुक्त किया गया। इसके पहले, वे ऊर्जा मंत्रालय में एडिशनल सेक्रेटरी के रूप में कार्यरत थे।
2022 में, केंद्र सरकार ने उन्हें डिपार्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल सर्विसेज (DFS) का सचिव बनाया और बाद में रिजर्व बैंक के डायरेक्टर के रूप में नामांकित किया। हाल के वर्षों में, उन्होंने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर नीतियाँ तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
शक्तिकांत दास का कार्यकाल आरबीआई के इतिहास में एक अहम अध्याय माना जाएगा। उन्होंने 2018 में उर्जित पटेल के इस्तीफे के बाद गवर्नर का पद संभाला। अपने छह साल के कार्यकाल के दौरान, उन्होंने कोविड-19 महामारी के आर्थिक प्रभाव को कम करने और देश में बढ़ती महंगाई पर नियंत्रण पाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके नेतृत्व में, आरबीआई ने वित्तीय स्थिरता बनाए रखते हुए विभिन्न सुधारात्मक नीतियाँ लागू कीं।
संजय मल्होत्रा के गवर्नर बनने के साथ, यह सवाल उठता है कि क्या आरबीआई की आर्थिक नीतियों में बदलाव देखने को मिलेगा। मल्होत्रा का अनुभव कराधान और वित्तीय नीतियों में रहा है, और उन्होंने केंद्र व राज्य सरकारों के साथ मिलकर कई योजनाओं पर काम किया है।
उनके नेतृत्व में, यह संभव है कि आरबीआई की नीतियाँ बैंकिंग क्षेत्र में संरचनात्मक सुधार और डिजिटल भुगतान प्रणाली को और अधिक सशक्त बनाने पर केंद्रित हों। इसके साथ ही, मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और मौद्रिक नीति की स्थिरता बनाए रखने की दिशा में भी उनकी नीतियाँ आगे बढ़ सकती हैं।
हालाँकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि वे अपने पूर्ववर्ती शक्तिकांत दास की नीतियों को कैसे जारी रखते हैं या उनमें क्या नया जोड़ते हैं। खासकर, बढ़ती वैश्विक चुनौतियों और घरेलू बैंकिंग सेक्टर में सुधार की जरूरतों को देखते हुए उनकी प्राथमिकताएँ क्या होंगी।
संजय मल्होत्रा का तकनीकी और प्रशासनिक अनुभव आरबीआई को एक नया दृष्टिकोण प्रदान कर सकता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि वे डिजिटल बैंकिंग, वित्तीय समावेशन, और आर्थिक स्थिरता पर अधिक जोर दे सकते हैं। इसके अलावा, छोटे और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को सशक्त बनाने और ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय सेवाओं की पहुंच को बढ़ाने के लिए उनके कदम अहम हो सकते हैं।
क्या मल्होत्रा के कार्यकाल में आरबीआई अधिक नवाचार और प्रभावी आर्थिक प्रबंधन की ओर बढ़ेगा, या मौजूदा नीतियों में छोटे बदलाव कर अपनी राह पर चलेगा? यह आने वाले समय में स्पष्ट होगा।