बॉलीवुड के सबसे मासूम अभिनेता संजय दत्त की बायोपिक 'संजू' ने रिलीज होते ही उनकी मासूमियत को जगजाहिर कर दिया है। संजू फिल्म ने यह बता दिया है कि वास्तव में वे 'खलनायक' नहीं बल्कि नायक हैं। एक ऐसे व्यक्ति या कहें ऐसे संत या वीरपुत्र जिन्होंने आम जनता को सच, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और मोह—माया से परे जीवन जीना सिखाया। उनका पूरा जीवन ही एक महाकाव्य है, जिसे अगर पढ़ लिया जाए, तो इंसान, आम इंसान न रहकर महापुरुष बन जाएगा जैसे संजू खुद हैं।
संजय दत्त के जीवन को एक सात्विक जीवन बताने में संजू पूरी तरह से सफल हुई है। संजू इतने महान हैं कि मुंबई दंगों के समय इनके घर से एके—47 बरामद हुई, लेकिन इसमें इन बेचारे की कोई गलती नहीं थी, वो तो किसी की साजिश थी इनके खिलाफ। इनकी महानता इसी से साबित हो जाती है कि राइफल बरामद होने के बाद इनकी फिल्म खलनायक ने रिकॉर्ड तोड़ बिजनेस किया था। इनकी महानता इससे भी जाहिर होती है कि अफीम, चरस, स्मैक जैसा नशा करने के बाद भी ये युवाओं के प्रेरणास्रोत हैं। इनकी मासूमियत इससे भी जाहिर होती है कि तीन बार जेल भी गए, लेकिन जेल तो महापुरुष ही जाते हैं, भले ही इन पर आरोप देश के कानून उल्लंघन का हो, तो क्या फर्क पड़ता है।
फिल्म में संजय दत्त को इतना चरित्रवान बताया गया है कि हर बार जेल से उन्हें 5—6 महीने की छुट्टी मिल जाती थी। अरे अगर वह सद्चरित्र न होते, तो क्या हमारा कानून उन्हें छुट्टी देता? अब इसे बड़ा सबूत और क्या चाहिए इनके कर्तव्यनिष्ठा और मोह—माया से परे होने का। संजू में यह भी बताया गया है कि संजय दत्त कितने ईमानदार और महिलाओं का कितना सम्मान करते हैं। फिल्म के एक सीन में वह 350 महिलाओं से अपने संबंध स्वीकार करते हैं, हैं न ईमानदार, कुछ भी नहीं छिपाया, यह उनका महिलाओं के प्रति सम्मान ही तो है। इनके दो तलाक हुए, लेकिन इन्होंने महिलाओ को सम्मान देना बंद नहीं किया और तीसरी शादी की।
अरे क्या सोच रहे हैं आप कि इतना मासूम व्यक्ति आपने अभी तक क्यों नहीं देखा, तो जाइए जनाब आप भी देखकर आईए इनकी मासूमियत को और 400 करोड़ तक पहुंचाइए इनके बिजनेस को।
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