हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह में दो चतुर्थी तिथि पड़ती है। जी हाँ और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी संकष्टी चतुर्थी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी विनायक चतुर्थी कहलाती है। जी हाँ, वहीँ इस समय नवंबर का महीना चल रहा है और इस महीने में संकष्टी चतुर्थी का व्रत 12 नवंबर को रखा जाएगा। आपको बता दें कि चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित मानी जाती है। इसी के साथ इस दिन भक्तगण सुख, शांति और समृद्धि के लिए एकदन्त दयावन्त चार भुजा धारी भगवान श्री गणेश की पूजा-अर्चना करते हैं। कहा जाता है भगवान गणेश भक्तों के लिए विघ्नहर्ता माने जाते हैं और ऐसा भी कहते है विघ्नहर्ता श्री गणेश की पूजा करने से भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। जी दरअसल ऐसी मान्यता है कि इस दिन गणपति की पूजा तथा व्रत रखने से ज्ञान और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। अब हम आपको बताते हैं संकष्टी चतुर्थी की तिथि और कथा।
संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त- चतुर्थी तिथि की शुरुआत 11 नवंबर 2022 रात 08 बजकर 17 मिनट से होगी। इस तिथि का समापन 12 नवंबर 2022 को रात 10 बजकर 25 मिनट पर होगा। इस दिन चंद्रोदय का समय रात 8 बजकर 21 मिनट बताया जा रहा है।
एकादशी के दिन तुलसी को नहीं अर्पित करना चाहिए जल, वरना होगा अनर्थ
संकष्टी चतुर्थी की कथा- एक दिन माता पार्वती नदी किनारे भगवान शिव के साथ बैठी थीं। उनको चोपड़ खेलने की इच्छा हुई, लेकिन उनके अलावा कोई तीसरा नहीं था, जो खेल में हार जीत का फैसला करे। ऐसे में माता पार्वती और शिव जी ने एक मिट्टी की मूर्ति में जान फूंक दी और उसे निर्णायक की भूमिका दी। खेल में माता पार्वती लगातार तीन से चार बार विजयी हुईं, लेकिन एक बार बालक ने गलती से माता पार्वती को हारा हुआ और भगवान शिव को विजयी घोषित कर दिया।
इस पर पार्वती जी उससे क्रोधित हो गईं। एक दिन माता पार्वती नदी किनारे भगवान शिव के साथ बैठी थीं। उनको चोपड़ खेलने की इच्छा हुई, लेकिन उनके अलावा कोई तीसरा नहीं था, जो खेल में हार जीत का फैसला करे। ऐसे में माता पार्वती और शिव जी ने एक मिट्टी की मूर्ति में जान फूंक दी और उसे निर्णायक की भूमिका दी। खेल में माता पार्वती लगातार तीन से चार बार विजयी हुईं, लेकिन एक बार बालक ने गलती से माता पार्वती को हारा हुआ और भगवान शिव को विजयी घोषित कर दिया। इस पर पार्वती जी उससे क्रोधित हो गईं।
मार्गशीर्ष महीने में ये काम करने से याद आ जाता है पिछला जन्म
आखिर क्यों किसी सोए व्यक्ति को नहीं लांघना चाहिए?, ये है मान्यता
कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही क्यों मनाते हैं देव दीपावली? जानिए राक्षस से जुड़ी पौराणिक कथा