हाल ही में कल कर्नाटक विधानसभा चुनावों के परिणाम घोषित हुए है, जिसके बाद यह चुनाव क्रिकेट के किसी रोमांचक मैच जितना रोमांचक होता हुआ दिखाई दे रहा है. यहाँ एक और कांग्रेस और जेडीएस मिलकर सरकार बनाने की जुगाड़ में लगे हुए है, वहीं बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी किसी तरह की तिकड़म भिड़ा कर सरकार बनाने के लिए कोशिश में लगे हुए. इस बीच परिणाम के बाद अभी तक कर्नाटक के राजनीतिक गलियारों में जो उठापटक देखने को मिल रही है वो लोकतंत्र और देश की राजनीति के लिए शर्मनाक है.
देश का एक बुद्धिजीवी वर्ग कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस और जेडीएस के गठबंधन को लेकर तरह-तरह की बात कर रहा है, साथ ही कुछ लोगों के अनुसार कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी बीजेपी को ही सरकार बनाना चाहिए ऐसी बातें भी सुनने को मिल रही है, यह सब का संवैधानिक हक़ है कि जिस पार्टी को गठबंधन के बाद स्पष्ट बहुमत है उसे ही सरकार बनाने का न्यौता दिया जाना चाहिए.
लेकिन एक बात जो गले से निचे उतरने का नाम ही नहीं ले रही है, वो यह कि कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी के नाते अगर राज्यपाल का न्यौता बीजेपी को जाना चाहिए तो क्यों न यही काम हाल ही में कुछ महीनों पहले हुए मणिपुर और गोवा विधानसभा चुनाव में भी होना चाहिए, जबकि यहाँ पर सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस थी.
गोवा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 18 सीट थी, बहुमत से 3 सीट दूर थी, बीजेपी के पास 13 सीटें थीं, बहुमत से 8 सीट की दूरी थी लेकिन बीजेपी ने एमजीपी और गोवा फारवर्ड पार्टी के साथ मिलकर यहाँ पर सरकार बना ली वहीं मणिपुर में भी यही हुआ कांग्रेस यहाँ भी सबसे पार्टी बनकर उभरी थी , कांग्रेस को यहाँ पर 28 सीटें मिली थी, बीजेपी को 21 सीटें हासिल हुई थी लेकिन बावजूद इसके भाजपा की सरकार बनी थी, जो बहुमत दिखाने में सफर रही थी, हालाँकि इसमें कुछ भी गलत नहीं था यह सब संवैधानिक था तो फिर यही चीज कर्नाटक में क्यों नहीं जब यहाँ पर कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर बहुमत पेश करने के लिए राज्यपाल से सम्पर्क किया.
कर्नाटक से मिल रही ख़बरों के अनुसार कर्नाटक में लोगों ने विधायक नहीं चुने बल्कि आलू बेंगन की सब्जियां खरीदी है जिनपर भाव लग रहे है और ख़रीदे जा रहे है. देश की राजनीति और लोकतंत्र के लिए कर्नाटक चुनाव में इस तरह की घटनाये देश को शर्मसार कर रही है, वहीं इन सब के बीच देश की स्वतंत्र संस्था कहे जाने वाला चुनाव आयोग न जाने क्यों लेकिन चुप है, जो सोचने वाला विषय है.